Sunday, March 14, 2021
Thursday, March 11, 2021
लड़कियां टूट जाती हैं
हर जख्म हर ठोकर से उबर तो आती हैं
तुम जानते नहीं हो मगर
लड़कियां टूट जाती हैं
लड़कियां टूट जाती हैं
किसी का हाथ थामे खुद हदों के पार जाने में
हदों के पार आकर फिर यकीं के टूट जाने में
किसी मेले में बच्चे सा अकेले छूट जाने में
ये खेले को समझने में,
वो मेले से निकलने में
वापस घर पहुंचने में
लड़कियां टूट जाती हैं
हुस्न की रौशनी से मन के अंधियारे छुपाने में
लबों की रंगतों से सांस की सिसकी दबाने में
आँख के काजलों से पीर के दरिया सुखाने में
वो इक आंसू छुपाने में
और फिर मुस्कुराने में
"सब कुछ ठीक है जी"
बस इतना बताने में
लड़कियां टूट जाती हैं
लड़कियां टूट जाती हैं
तुम जानते नहीं हो मगर
लड़कियां टूट जाती हैं
- पुष्यमित्र उपाध्याय
#puShyam
Sunday, February 14, 2021
जिस मौसम में तुम बिछड़े थे
जब शाखें गुलों से महकीं थीं
जब गलियां गलियां बहकीं थीं
जब देख शाम मुस्काती थी
जब राहें सुबह सजाती थी
जिस मौसम में सब मिलते थे
उस मौसम में तुम बिछड़े थे
जब पिघली बर्फ सर्दियों की
जब टूटी नींद बदरियों की
जब नदियां छम छम झूम चलीं
कर तट घाटों के चूम चलीं
जब खिलते गुंचे गुंचे थे
उस मौसम में तुम बिछड़े थे...
जिस मौसम में सब मिलते थे
उस मौसम में तुम बिछड़े थे
#puShyam