Thursday, March 11, 2021

लड़कियां टूट जाती हैं

हर जख्म हर ठोकर से उबर तो आती हैं

तुम जानते नहीं हो मगर 

लड़कियां टूट जाती हैं

लड़कियां टूट जाती हैं


किसी का हाथ थामे खुद हदों के पार जाने में

हदों के पार आकर फिर यकीं के टूट जाने में

किसी मेले में बच्चे सा अकेले छूट जाने में

ये खेले को समझने में, 

वो मेले से निकलने में

वापस घर पहुंचने में

लड़कियां टूट जाती हैं


हुस्न की रौशनी से मन के अंधियारे छुपाने में

लबों की रंगतों से सांस की सिसकी दबाने में

आँख के काजलों से पीर के दरिया सुखाने में

वो इक आंसू छुपाने में

और फिर मुस्कुराने में

"सब कुछ ठीक है जी"

बस इतना बताने में

लड़कियां टूट जाती हैं


लड़कियां टूट जाती हैं

तुम जानते नहीं हो मगर 

लड़कियां टूट जाती हैं


- पुष्यमित्र उपाध्याय

#puShyam




 



Sunday, February 14, 2021

 जिस मौसम में तुम बिछड़े थे


जब शाखें गुलों से महकीं थीं 

जब गलियां गलियां बहकीं थीं

जब देख शाम मुस्काती थी

जब राहें सुबह सजाती थी

जिस मौसम में सब मिलते थे

उस मौसम में तुम बिछड़े थे


जब पिघली बर्फ सर्दियों की

जब टूटी नींद बदरियों की

जब नदियां छम छम झूम चलीं

कर तट घाटों के चूम चलीं

जब खिलते गुंचे गुंचे थे

उस मौसम में तुम बिछड़े थे...

जिस मौसम में सब मिलते थे

उस मौसम में तुम बिछड़े थे

#puShyam


Wednesday, January 20, 2021

तेरा ख़याल, तेरी जुस्तजू, तेरी आशिकी गुज़ार दी
हमने गुज़ार दी........... हां वो ज़िन्दगी गुज़ार दी 🌿

-#puShYam 



 कविता एक खूबसरत मुखौटा है,

अपनी दुश्वारियों को कह देने का..
लोग लफ्ज़ों की खूबसूरती में
देख नहीं पाते बदसूरती हालातों की,
और बच जाते हैं हम,
नसीहतों और दिलासों की भीड़ से...
सुकून आ जाता है बस
बयां होने का...
मरहमों से आज़ाद,
जख्म के जावेदां होने का...

-#puShYam




फिर मेरी सुबह महक जानी है... फिर तुझे ख़्वाब में देखा है मैंने....

Herb

#puShyam

फरेब करते हैं अक्सर शब में रौशनी के कतरे,
पुरानी दुश्मनी से ज्यादा नई दोस्ती के खतरे...
#puShyam