उसकी ख्वाहिशों पर नही कोई गिला मुझको,
रंज बस ये है कि वो नही मिला मुझको|
रखता है वो नज़रों में नापाक मुरादें ही अक्सर,
सिखाता है मगर होठों से ,सलीका-ऐ-वफ़ा मुझको|
रौशन करता है हर ज़र्रे को वो नूर से यूँ तो,
मगर सौगातों में उसने बस अँधेरा ही दिया मुझको|
भले ही मंजिलें मेरी छीनीं नही कभी उसने ;
मगर रास्ते भी तो कभी करता नही अता मुझको|
नीयत बिगाड़ देना ही रही नीयत सदा उसकी;
मेरे लिए है क्या नीयत,नही कुछ भी पता मुझको.........
खूबसूरत गज़ल ..
ReplyDeleteकृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...
वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .
सकी ख्वाहिशों पर नही कोई गिला मुझको,
ReplyDeleteरंज बस ये है कि वो नही मिला मुझको|
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
सुझाव के लिए धन्यवाद्....मैं अभी किये देता हूँ|
ReplyDeleteबस यूँ ही निरंतर आप बड़ों का आशीष व सहयोग मिलता रहे...
खुलते पंखो को मिला हो साथ आसमानों का;
ReplyDeleteकुछ इस तरह से मिला है आपसे अब हौसला मुझको.......