Thursday, September 30, 2010

गिला.....

उसकी ख्वाहिशों पर नही कोई गिला मुझको,
रंज बस ये है कि वो नही मिला मुझको|

रखता है वो नज़रों में नापाक मुरादें ही अक्सर,
सिखाता है मगर होठों से ,सलीका-ऐ-वफ़ा मुझको|

रौशन करता है हर ज़र्रे को वो नूर से यूँ तो,
मगर सौगातों में उसने बस अँधेरा ही दिया मुझको|

भले ही मंजिलें मेरी छीनीं नही कभी उसने ;
मगर रास्ते भी तो कभी करता नही अता मुझको|
 

नीयत बिगाड़ देना ही रही नीयत सदा उसकी;
मेरे लिए है क्या नीयत,नही कुछ भी  पता मुझको.........

4 comments:

  1. खूबसूरत गज़ल ..



    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  2. सकी ख्वाहिशों पर नही कोई गिला मुझको,
    रंज बस ये है कि वो नही मिला मुझको|


    बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना ।

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  3. सुझाव के लिए धन्यवाद्....मैं अभी किये देता हूँ|
    बस यूँ ही निरंतर आप बड़ों का आशीष व सहयोग मिलता रहे...

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  4. खुलते पंखो को मिला हो साथ आसमानों का;
    कुछ इस तरह से मिला है आपसे अब हौसला मुझको.......

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