Monday, October 4, 2010

ख्वाब हूँ मैं...

फूलों के बीच काँटों सा पला हूँ...
शायद एक ख्वाब हूँ रात भर जगा हूँ|

उम्मीदों कि गठरी सी लादे सीने पे,
पत्थरों के शहर आ निकला हूँ|

ठोकरों से शिकवा नही रहा कभी,
गम  बस इतना है कि तुझसे आ मिला हूँ|


तेरे बेगानेपन से नही ऐतराज़ मुझे कोई,
मगर तुझसे न किया,वो गिला हूँ |

मेरी मंजिलें मिटाना आदत है तुम्हारी;
वरना इस सफ़र में बहुत दूर चला हूँ...................

2 comments:

  1. kya baat hai...........pdai mat kro hna bus pure din net per chipak ker yhi klakari kiya kro.......good very good bro....padh lo ab sumjhena.....

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  2. मेरी मंजिलें मिटाना आदत है तुम्हारी;
    वरना इस सफ़र में बहुत दूर चला हूँ

    बहुत संवेदनशील ....अच्छी प्रस्तुति

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