Wednesday, October 6, 2010

एक शाम उदास सी.........

मन के चीत्कारों को दबाये गहरी श्वास सी;
आम रास्तों में  गली एक ख़ास सी|


कुछ बेचैनी  है सोच के जंजाल में अभी;
उल्लासित अभिनय पर आँखें उदास सी|


कर लिया है ज़द में समंदर भी अब तो;
बाकी है फिर भी जन्मो की प्यास सी|


अँधेरे भी कट जाते हैं नूर की चाहत में यूँ तो
 पर खामोशियो में गूंजे है तेरी आवाज़ सी.....

1 comment:

  1. अँधेरे भी कट जाते हैं नूर की चाहत में यूँ तो
    पर खामोशियो में गूंजे है तेरी आवाज़ सी.

    सुन्दर अभिव्यक्ति

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