Friday, October 8, 2010

हमारा मीडिया

पिछले दिनों एक निजी समाचार चैनल पर एक अजीब सा द्रश्य प्रसारित किया जा रहा था, स्थान था आगरा में यमुना नदी का एक पुल| पुल पर बड़े बड़े विद्युत के खम्बे लगे हुए हैं, जिन खम्बों पर चढ़-चढ़ कर कुछ बच्चे उफनती कालिंदी में छलांग लगा रहे थे| बच्चों की उम्र भी तकरीबन बारह से सत्रह वर्ष की रही होगी| बच्चे नासमझ ही थे केवल अपने आनंद के लिए वे ये हरकतें कर रहे थे| पुल पर काफी भीड़ ये सब देख रही थी |
इन सब के बीच संवाददाता चीख रहे थे- "देखिये इन बच्चों को जो बिजली के खम्बों पे चढ़ कर यमुना में छलांग लगा रहे हैं.....खम्बों से करंट भी आ सकता है.........नदी का बहाव भी बहुत तेज़ है, पर ये बच्चे फिर भी लगातार कूद रहे हैं..........और देखिये इन लोगों को जो सब खड़े हो कर तमाशा देख रहे हैं.. कोई भी इन्हें रोक नही रहा है...देखिये ..देखिये...???? का सीधा प्रसारण........ सबसे पहले हमारे द्वारा आप तक पहुँचाया.."| शाम का समय था लोग बड़े चाव से टेलीविजन में ये सब तमाशा देख रहे थे|
  हालांकि ऐसी खबरें रोज़ ही आतीं हैं, सामान्य सा ही है अब तो ये लोगो के लिए| लोगों ने आश्चर्य करना लगभग बंद सा ही कर दिया है, क्यों कि कब तक आश्चर्य करेंगे? रोज़ कुछ न कुछ अजीब ही होने लगा है अब तो| परन्तु इन सब के बीच में ये प्रश्न उठता है कि जब वे बच्चे कूद रहे थे, और लोग खड़े हो कर देख रहे थे; तब मीडिया कर्मी क्या कर रहे थे? लोग तो सिर्फ तमाशा देख रहे थे और आप उस तमाशे की वीडियो बना रहे थे,टी.आर.पी. और चंद रुपयों के लिए|
 प्रश्न उठाये जाने चाहिए मीडिया कर्मियों पर,
"क्या आप इस देश के नागरिक नही हैं ?"
"क्या आपके मूल कर्त्तव्य नही है ?"
 "क्या टी.आर.पी. के आगे मानवता का कोई महत्व नही है ?"
"क्या आप चैनल की भक्ति में इतने डूब गये हो की इस देश के लोगो के प्रत्ति अपना दायित्व भूल चुके हो ?"
आपका धर्म था उन बच्चों को रोकना; लोग रोकें न रोकें आपको रोकना चाहिए था! आप जिम्मेदार नाम से जुड़े हुए हैं जो की आम नागरिक से अलग है| पत्रकार का बड़ा सम्मान होता है; देश के बाहर जब कहीं पत्रकार जाता है, तो वह हमारे देश को प्रस्तुत करता है; उस व्यक्ति द्वारा ऐसी तुच्छ और बेहूदा हरकत शोभनीय नही होती|
 ये सिर्फ एक आगरा या किसी पुल की घटना नही है; आधुनिक मीडिया कर्मियों का व्यवहार हर स्थान पर उदासीन ही रहता है|
समस्या का समाधान होने के बाद भी वे समस्या को बढ़ा कर घटना और घटना से "सनसनीखेज खबर" बनाने पे अधिक ध्यान देने लगे हैं|
    क्या हम ऐसे ही महान भारत का मिथ्या स्वप्न देख रहे है? हम लोग तकनीकी और मशीनी विकास की धुन में नैतिकता को बिलकुल ही भुलाने लगे हैं, ये तो तरक्की नही है! मानवता को खोकर विकास किया तो किस काम का ? ये आत्म-संतोष तो दे ही नही सकता; और साधन तो बनाये ही जाते हैं संतोष के लिए | फिर ये कैसी प्रगति है? जिसमें विचारों और सभ्यता का हनन ही देखने को मिल रहा है! "जो गलत हो रहा है उसे बदलने की कोशिश की जाती है न कि उसकी खबर और खबर से पैसा बनाया जाये", तब ही आप भारतीय हो और तब ही भारत महान होगा| सच तो ये है कि हमारा भारत महान था, जब वो कुछ लड़के रहते थे यहाँ; जो दीवाने थे इस देश के और सच्चे रखवाले थे देश के लोगो के! संविधान के न होते हुए भी, उन्हें अपने कर्तव्यों  का बोध था, निभाते भी थे; अधिकारों का ज्ञान भी था, बस वही दिलाने की ज़द्दोजेहद में चले गये| वे लोकप्रिय भी हुए पर ना किसी चैनल से, ना किसी भाषण से , ना विज्ञापन से, ना किसी साक्षात्कार से| वे लोकप्रिय हुए तो अपने धर्म से, कर्म से, अपनी निष्ठा से! और हम सबके आदर्श बन गये|
और सच कहूँ तो बस वे ही सफल थे............
                                                                                                                          -पुष्यमित्र उपाध्याय

3 comments:

  1. PRETTY IMPRESSIVE......

    ReplyDelete
  2. i really lyke this bahut acha lga..yeh wala ..........bahut jada ..

    ReplyDelete