Friday, October 22, 2010

कुछ वक़्त के लिए थाम लिए थे अपने हाथ...पर अब फिर से प्रस्तुत हैं कुछ पंक्तियाँ.......

पतझर भी अजीब थे,बरसात भी अजीब हैं;
लोग भी अजीब हैं,उनकी बात भी अजीब हैं|

बदलते हैं बस बयार के मयार पे ही;
आदमी अजीब हैं,और जात भी अजीब हैं|

ना आया लौट कर फिर,जो हमराही था मेरा
उसकी कसमें अजीब हैं, वायदात भी अजीब हैं|

फासलों से नही है शिकायतें अब किसी को ;
वो दूर  भी अजीब थे ,वो पास भी अजीब हैं|

कब तक गीतों की राहें देखीं जाएँ अब?
वो धुन भी अजीब थीं, वो साज़ भी अजीब हैं|

जब  परखा ही नही तुमने कभी  ,तो तुम्हारे लिए,
हम कल भी अजीब थे हम आज भी अजीब हैं.............

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