Wednesday, January 26, 2011

जिन्दगी

जाने कहाँ अफसोस में रही जिन्दगी,
जिन्दगी भर रेत सी बही जिन्दगी|

दीयों की तलाश में,अंधेरो के पास में,
ना जाने कितने बोझ सही जिन्दगी|

बिता दी हर साँझ एक सूरज के विरह में,
लोग भी कहते हैं कि ये है नहीं जिन्दगी|

इतने क़त्ल देख लिए हैं अपने अरमानों के,
कभी बयां, तो कभी चुप रही जिन्दगी |

किसी ने कहा बाज़ार में बिकता है ईमान भी अब,
हमने पूछा मिलती भी है क्या कहीं जिन्दगी|

मोहब्बत के सौदे में भाव लगा दिए अपने,
बड़ी सस्ती है शायद यहीं जिन्दगी

सोचा कि ख़त्म करें अब इस वहशत के सफ़र को,
पर हाथ में उम्मीद लिए आ गयी फिर वही जिन्दगी|

Tuesday, January 25, 2011

मैं गणतंत्र नही गाऊंगा

जब तक ना अवसर में समता|
जब तक ना शासन में क्षमता|
जब तक ना जन-जन में राष्ट्र पुकार है,
इस दिन को शुभ कहना ही बेकार है|

स्वप्न बाँध कर कई बंधा था संविधान इस भारत का,
टूट चुका है रज-रज में अभिमान मेरे इस भारत का|
जब तक हों सत्ता में लुटेरे|
जब तक हैं न्याय अँधेरे|
जब तक ना अन्यायी का प्रतिकार है,
इस दिन को शुभ कहना ही बेकार है|

भारत माँ के सच्चे रखवाले भुला दिए,
फूहड़ अभिनय और नर्तक सब नायक बना दिए|
जब तक ना सम्मान तिरंगी|
जब तक है चिंतन में फिरंगी|
जब तक ना निज-भाषा कि हुंकार है,
इस दिन को शुभ कहना ही बेकार है.......

Monday, January 24, 2011

आ दिल अब लौट चलें किनारे कि ओर...

लगता नही है कहीं, इस समंदर का कोई छोर;
आ दिल अब लौट चलें किनारे कि ओर...

बस गहराइयाँ ही हैं यहाँ डूब जाने के लिए,
कोई लहर ना आई साथ निभाने के लिए|
हिम्मतें टूटीं जब भवंर में तो जाना हमने
सागर होते ही हैं बस नहाने के लिए||

हो गयी रात थम गया शोर.....
आ दिल अब लौट चलें किनारे कि ओर...

Thursday, January 20, 2011

काला-धन

पिछले दिनों हमारे माननीय कृषि मंत्री श्री शरद पवार जी  ने एक कथन दे डाला कि "सब्जियों की कीमतें क्यों बढ़ रहीं हैं मुझे नहीं पता"| एक दिन बीता ही था कि, प्रधानमंत्री जी का बयान था कि "महंगाई पर बोलने के लिए मैं कोई ज्योतिषी नही हूँ" साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि "काले-धन सम्बन्धी मसले का हल तुरंत नहीं निकाला जा सकता, क्यों कि वे एक अनूठे करार से जुड़े होने के कारण वे उन नामों की गोपनीयता को बनाये रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं"| इन वक्तव्यों से दो ही निष्कर्ष सामने आते हैं कि -या तो भारतीय जनता का नेतृत्व में स्थायित्व लाने का निर्णय गलत था; -या फिर वर्तमान शासन, राष्ट्र की समस्याओं से बचना ही चाहता है!
    इन सभी पदारूढ़ों के पास समाधानों के लिए स्वयं के कोई विचार नहीं हैं; लिए गये सभी निर्णय बस विपक्ष के विरोध और जनता के दवाब से बचने के लिए की गयी औपचारिकता मात्र है| इन मुद्दों पर सत्तारूढ़ों के वक्तव्य और विचार कभी भी गंभीर और प्रभावी नही लगे, ना ही मंत्रियों में इन मुद्दों पर चिंतन देखा गया; वे आपातकालीन बैठकों और चिंतन-सभाओं में भी प्रसन्न मुद्रा में अभिवादन लेते हुए जाते हैं| ऐसा प्रतीत होता है कि शासन पे दवाब ना बने तो जन-समस्याओं के प्रति वे उदासीन रवैया ही रखेंगे, और दवाब बनने की स्थिति में बस बचकाने और गैर-जिम्मेदाराना बयान देना ही निर्वहन समझने लगे हैं| ये सब बिलकुल ऐसे है जैसे गाज पड़ने पर सर बचा लेना| सभी नीतियाँ बचावों के लिए ही मालूम प्रतीत होतीं हैं|
    सिर्फ औद्योगीकरण और मशीनी-विकास ही देश के लिए विकास नहीं कहलाता| जन-समस्याओं का निबटारा भी अधिक ज़रूरी है बजाय बड़े सौदेबाजी के; व्यापर तथा विदेश नीतियां द्वितीयक अंग हैं लक्ष्य नहीं! यदि लक्ष्य नागरिक उत्थान है तो उस दशा में अन्य गतिविधियों को अल्पकालीन विराम देने में बड़ा नुकसान ना होगा| जब सब्जियों में मूल्यवृद्धि के बारे में आपका ज्ञान शून्य है तो क्या अधिकार है आपको पद पर यथावत बने रहने का? कैसे आपका मन लग जाता है वर्ल्ड कप के अनावरण समारोहों में? आपकी जनता दुखी है आपको नींद कैसे आ जाती है जबकि इतनी जिम्मेदारियां आपका इंतज़ार कर रहीं हैं? आप अपनी असफलताओं की जवाबदेही और बचावों के लिए ही वहां नही हैं, आपकी अपनी जिम्मेदारियां भी होनी चाहिए और अपने मजबूत प्रयास भी| और यदि आपके पास ऐसा कुछ नही है तो एक शर्म तो होनी ही चाहिए कि "मुझे नहीं पता की मैं मंत्री क्यों हूँ?" शिवखेडा जी कहते हैं की यदि आप समस्या के समाधान का हिस्सा नही हैं तो आप खुद समस्या हैं|
    उधर आठ साल से लोकतंत्र के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्ति का बयान कि "मैं कोई ज्योतिषी नहीं हूँ"; यदि इतने अनुभव और अर्थशास्त्र में प्रकांड होने के बाद भी आप जन-समस्याओं के निराकरण खोजने को ज्योतिषवाद समझते हैं, तो आप में विश्वास रखने वाले अन्धविश्वासी ही कहलायेंगे! एक और मुद्दा काफी गंभीर है; सरकार ने कहा कि "वे करार से जुड़े होने के कारण भ्रष्टाचारियों का नाम नहीं बता सकते"| ऐसा कौन सा करार आपने कर डाला जो देश-हित और जनता से ऊपर है? आप इस देश के सिर्फ मंत्री हैं मालिक नहीं! ऐसी कौन सी भीष्म प्रतिज्ञा आपने ले ली जो राष्ट्र की संपत्ति के दोहन का अधिकार आपको दे देती है? इस देश की प्राकृतिक संपदा, आर्थिक संपदा के उचित प्रयोग व समान अवसर प्रदान करने हेतु सरकार का गठन किया जाता है; इसका अर्थ ये कतई नहीं हैं कि आप में से कुछ उस संपदा का संग्रह कर लें! लोकतंत्र के अंगमात्र हैं आप सर्वेसर्वा नही|
     इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख सर्वथा उचित ही है! यह बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था| जर्मन बैंकों में जमा धन केवल टैक्स-चोरी नही है बल्कि यह भारतीय संपत्ति की चोरी करने जैसा है, और जो भी इस चोरी में लिप्त हैं वे राष्ट्र-द्रोही ही हैं,"अपराधी"! जब बिना यात्रा-कर दिए यात्रा करने वाले आम नागरिक को छः माह की सजा का प्रावधान है, और पकडे जाने पर त्वरित सज़ा दे दी जाती है; आयकर में गड़बड़ी करने वालों, विद्युत्-कर से छेड़छाड़ वाले मामलों में भी त्वरिक कार्यवाही का आदेश है; तो फिर इतने संगीन अपराधियों का साथ सरकार क्यों दे रही है? अब तो छिपाने वालों को भी संलिप्तता के संशय में ले लेना चाहिए! इस सम्बन्ध में बचाव की हर याचिका खारिज कर देनी चाहिए! और अधिक समय ना देते हुए शीघ्र ही कार्यवाही शुरू की जानी चाहिए! उस करार के बहाने में सिर्फ २६ लोगों के हित में ही क्यों सोचा गया? क्या सरकार के वे ज्यादा हितैषी हैं? जब ये करार किया गया था, तो क्या इसके दुरुप्रयोग के बारे में नही सोचा गया? इस करार में किस स्तर के लोगों को धन जमा करने की अनुमति दी गयी थी? क्या ये करार हर खाता धारक की गोपनीयता के सन्दर्भ में था?यदि हाँ तो क्यों? जब बैंको से करार था अर्थात हर गतिविधि पर नज़र थी तो जब इतनी अधिक राशि का धन स्थानांतरित हो रहा था तब सरकार द्वारा कोई हस्तक्षेप क्यों नही हुआ? क्या इस प्रकरण में शासन कि भूमिका पर प्रश्न उठाया जाना गलत होगा?
    इतना पैसा विदेशों में पड़ा हुआ है, इधर लोग भूखे मर रहे हैं, किसान आत्म-हत्या कर रहे हैं, सडकों के गढ्ढे  गहराइयों में बदल गये हैं, बेरोज़गारी फ़ैल रही है, महंगाई बढ़ रही है, और वे कहते हैं कि हम अगली आम सभा में इन मुद्दों पर विचार करेंगे! अरे विचार तो आपके मनः मष्तिष्क में आते ही नही! एक बुज़ुर्ग जो गलती से साधारण किराया देकर शयन-यान में बैठ जाता है, तो उसे रेलवे उड़न-दस्ते के अधिकारी लात घूंसों से नियमों कि जानकारी देते हैं? और एक तरफ देश के इतने बड़े धन को चुरा कर शयन कर रहे लोगों को गोपनीयता प्रदान की जा रही है?
इनके बचाव पक्ष में नियुक्त होने वाले वकीलों को भी राष्ट्र-द्रोही करार दे देना चाहिए|
      ऐसा कोई हक हमने आप को नही दे दिया जो आप निरंतर हमारे जीवन और देश की दुर्दशा करते जाएँ! आम लोगों के हित का ध्यान आपमें क्यों नही है? यदि आप सिर्फ चिंतन करना जानते हैं, तो अपने पद पर होने की वजह का भी चिंतन करें, अपने भारतीय होने पर भी चिंतन करें! एक पशु भी जिस घर का खाता है उसकी रखवाली तो करता है; उस घर से मिली रोटी चुरा कर दूसरो के घर में इकठ्ठा नही करता! ये आवाज़ बुलंद होनी चाहिए; सवाल निरंतर उठने चाहिए कि एक राष्ट्रवादी बयान को अपराध करार देने वाले खुद चोरी करते रहें, ये अधिकार उन्हें कहाँ से मिल गया? वो धन इस देश का है उन २६ नामों का नही! ये मुद्दा बड़ी देर से उठा है, सरकारी नीतियां इसे दबा ही देंगी! ऐसे में पूरे राष्ट्र से आह्वान है कि इसे दबाने ना दिया जाए! प्रश्न यूँ ही उठने चाहिए क्यों कि यदि अभी कोई सख्त कदम ना लिया गया तो बाकी बची प्राकृतिक संपदा को भी ये लोग बेच कर विदेशों में जमा कर देंगे........................जीता रहे हिंद! जीता रहे भारत!

Wednesday, January 19, 2011

"राष्ट्रवादिता"! समस्या या सबसे बड़ा समाधान????

कुछ लोगों की शिकायतें अक्सर तभी बढती हुई देखी जातीं हैं, जब भी यहाँ संस्कृति को बचाने की मुहिम शुरू की जाती है; कुछ लेखिकाएं  राष्ट्रवादिता को समस्या मानतीं है (सभी लेखिकाओं के लिए नहीं)| समझ ही नहीं आता कि ये राष्ट्रवादिता और संस्कृति को ही अपनी उपेक्षा का कारण क्यों ठहराते हैं? जबकि भारतीय संस्कृति पूरी तरह नारी शक्ति पर आधारित है| इनके विषयों में नारी मुक्ति के उपाय, राष्ट्रविरोधी बयान और संस्कृति की आलोचना ही अधिकतर देखने को मिल रही है| राष्ट्र चिंतन के लेखों में भी घुमा फिरा कर व्यक्तिगत या सामाजिक आलोचनाओं पर मुद्दे को ले आया जाता है| हालाँकि इस विलक्षण लेखन शक्ति का प्रयोग कुछ नए सुझावों, योजनाओं के लिए भी किया जा सकता है|
   राष्ट्रवादी होना बुरा नहीं है! मैं ऐसा सिर्फ एक राष्ट्रप्रेमी होने के नाते नही लिख रहा हूँ, बल्कि इसमें मुझे तर्क भी ठीक ही लगते हैं| "लोहे को काटने के लिए लोहा ही बनना पड़ता है!" जितनी तेज़ी से इस देश ने भौतिक उन्नति की है; उतनी ही तेज़ी से यहाँ के नागरिकों की नैतिक अवनति भी हुई है| अब यदि नैतिकता और राष्ट्रप्रेम को पुनः लाने के लिए, प्रयास कट्टर सीमा तक पहुँच रहे हैं, तो इसमें इतना बवाल मचाने वाली क्या बात है? आखिर इतनी तीव्र सांस्कृतिक हानि की भरपाई के प्रयास भी तीव्र ही होने चाहिए! जब भारत में देश-प्रेम, संस्कृति, सभ्यता जो कि  १८ सभ्यताओं के आक्रमण के उपरान्त भी अक्षुण रही, का हनन, हरण, और पाश्चात्यीकरण हो रहा था, तब इन्होने विरोधी स्वर नही उठाये? क्यों कि ये सब पाश्चात्य कों अपनी स्वतंत्रता का मसीहा समझने लगे हैं, जबकि यही इस राष्ट्र के पतन का कारण है! फिर चाहे वो "आर्थिक पतन" हो या "आध्यात्मिक पतन" या "सामाजिक पतन"|
      कुछ लोग जाग रहे हैं पिछले कुछ समय से! भारतीय रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर विमल जालन, पूर्व जस्टिस बी.एन.कृष्ण, जमशेद गोदरेज और अज़ीज़ प्रेमजी ने पत्र के माध्यम से, बाबा रामदेव ने शिविरों के माध्यम से, कवियों ने मंचों के माध्यम से अपनी बात रखी, जिसे जो तरीका ठीक लगा है, उसी से अभिव्यक्त किया अपने राष्ट्रप्रेमी विचारों को| परन्तु लक्ष्य एक ही है "राष्ट्रहित"! ये सब भी राष्ट्रवादी ही हैं| ऐसे में यदि एक वर्ग ऐसा भी आगे आया जिसे उपरोक्त प्रयास अपर्याप्त लगे, और अधिक तीव्रता से राष्ट्र-चेतना जगाने के प्रयास किये,तो इसमें चिंतन क्यों? अब इसे कट्टरवाद कहो या कुछ और! पर ये वैसा ही है, जैसे स्वाधीनता संग्राम में "गरम दल और नरम दल" की भूमिका थी|
लक्ष्य बस "भारत की स्वतंत्रता" ही था! तो क्या गलत जब कुछ नये खून वाले अपनी सभ्यता को बचाए रखने के लिए अतिवादी हो गये? क्यों इन तुच्छ विचारों वाले लेखकों की कलम तन जातीं हैं, जब बात हमारी संस्कृति की आने लगती है? क्यों हमारी तुलना पाकिस्तान से करने दी जाती है?
    भगत सिंह और नेताजी के तरीकों को भी गलत बताया गया था! माना आज़ादी उनके तरीकों से नही मिली, परन्तु सच तो यह है की आज़ादी मिली ही नही! "हम पहले अंग्रजों के गुलाम थे आज हम अंग्रेजी के गुलाम हैं"| "पहले एक कम्पनी हमारे देश को लूट रही थी आज हजारों कम्पनियाँ इस देश का खून चूस रहीं हैं" और साथ में विचारों को भी; हम उनके द्रष्टिकोण से दुनिया देख रहे हैं! पहले एक रानी हम पे राज़ करती थी,आज उस रानी की जबान राज़ कर रही है! यदि तरीके भगत सिंह और नेताजी के अपनाये गये होते तो अभी हम लोग राज़ कर रहे होते, ये गद्दार आवाजें फिर ना उठतीं, और ना उठता कोई पाकिस्तान हमसे कट्टरवादी तुलना करवाने के लिए..............