जाने कहाँ अफसोस में रही जिन्दगी,
जिन्दगी भर रेत सी बही जिन्दगी|
दीयों की तलाश में,अंधेरो के पास में,
ना जाने कितने बोझ सही जिन्दगी|
बिता दी हर साँझ एक सूरज के विरह में,
लोग भी कहते हैं कि ये है नहीं जिन्दगी|
इतने क़त्ल देख लिए हैं अपने अरमानों के,
कभी बयां, तो कभी चुप रही जिन्दगी |
किसी ने कहा बाज़ार में बिकता है ईमान भी अब,
हमने पूछा मिलती भी है क्या कहीं जिन्दगी|
मोहब्बत के सौदे में भाव लगा दिए अपने,
बड़ी सस्ती है शायद यहीं जिन्दगी
सोचा कि ख़त्म करें अब इस वहशत के सफ़र को,
पर हाथ में उम्मीद लिए आ गयी फिर वही जिन्दगी|
जिन्दगी भर रेत सी बही जिन्दगी|
दीयों की तलाश में,अंधेरो के पास में,
ना जाने कितने बोझ सही जिन्दगी|
बिता दी हर साँझ एक सूरज के विरह में,
लोग भी कहते हैं कि ये है नहीं जिन्दगी|
इतने क़त्ल देख लिए हैं अपने अरमानों के,
कभी बयां, तो कभी चुप रही जिन्दगी |
किसी ने कहा बाज़ार में बिकता है ईमान भी अब,
हमने पूछा मिलती भी है क्या कहीं जिन्दगी|
मोहब्बत के सौदे में भाव लगा दिए अपने,
बड़ी सस्ती है शायद यहीं जिन्दगी
सोचा कि ख़त्म करें अब इस वहशत के सफ़र को,
पर हाथ में उम्मीद लिए आ गयी फिर वही जिन्दगी|
अपने वफ़ा के वादों का उसने कुछ यूँ सिला दिया,
ReplyDeleteकि शक भी मुझे हुआ नही और यकीं दिला दिया.....