Monday, January 24, 2011

आ दिल अब लौट चलें किनारे कि ओर...

लगता नही है कहीं, इस समंदर का कोई छोर;
आ दिल अब लौट चलें किनारे कि ओर...

बस गहराइयाँ ही हैं यहाँ डूब जाने के लिए,
कोई लहर ना आई साथ निभाने के लिए|
हिम्मतें टूटीं जब भवंर में तो जाना हमने
सागर होते ही हैं बस नहाने के लिए||

हो गयी रात थम गया शोर.....
आ दिल अब लौट चलें किनारे कि ओर...

1 comment:

  1. उन दो हैरान आँखों को छोड़ कर भाग चला था मैं, कि लौट कर आऊंगा खुद को इनके काबिल बनाकर.......आज मैं इतनी दूर निकल आया हूँ कि वो दो आँखें मेरे काबिल नही रहीं...

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