Thursday, February 3, 2011

वन्दे मातरम!

चाँद आकाश में निकला हुआ है
है रात आधी बीत गयी,
सन्नाटा है कुछ घरों में, नींद का;
कुछ घरों में बेउम्मीद का...
एक बड़ा सरकारी परिसर,
खुलते हुए तालों की आवाजें
कुछ सांसें, कुछ चालों की आवाजें,
खून से लिपटा चेहरा
चार कदमों के बीच लड़खड़ाते दो कदम,
साथियों की पुकारें, गर्व ज्यादा आंसू कम,
और इन सब को आखिरी विदा देते दो हाथ,
ऊँचे तख़्त पे सजे हैं इंतज़ाम ,
रस्सी एक बाँध रखी है,
एक गाथा मिटाने को,
फिर गूंजता है स्वर......."वन्दे मातरम"
दो आँखें अभी भी आस लगाये देख रहीं हैं
अपने तिरंगे को, सुकून से लहराते हुए,
जिसके लिए खुद सुकून के अर्थ मिटा दिए,
फिर उठते हैं, खयालों के घेरे,
बीते सब दिन अँधेरे,
सारी कोशिश, सारी उम्मीदें
फिर वो रस्सी डाल देता है  गले में, कोई जो पहले अपना ही था,
फिर गूंजता है स्वर.......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!.....वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!.....वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!.....वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!.....वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!.....वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!......वन्दे मातरम!

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