पूरा मज़मा खिलाफत में उठ सा गया है, मेरे आगोश में वो क्या आ रहे हैं,
खफा हो रहीं खुद मेरी महफ़िलें हीं, मोहब्बत में आकर जो हम गा रहे हैं |
कैसे समझाएं हम उनकी नादानियों को ,जब खता हमने कोई की ही नहीं है
पहले हम बहकते थे कोई नाम लेकर, आज हम भी किसी को बहका रहे हैं|
-पुष्यमित्र उपाध्याय
खफा हो रहीं खुद मेरी महफ़िलें हीं, मोहब्बत में आकर जो हम गा रहे हैं |
कैसे समझाएं हम उनकी नादानियों को ,जब खता हमने कोई की ही नहीं है
पहले हम बहकते थे कोई नाम लेकर, आज हम भी किसी को बहका रहे हैं|
-पुष्यमित्र उपाध्याय
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