Saturday, March 19, 2011

शुभ होली

आप सभी को होली की हार्दिक मंगलकामनाएं...खूब रंग खेलिए, उलास मनाइए, नशे-जुए एवं कुसांस्कृतिक  गतिविधियों से परहेज़ रखें, आपसी रिश्तों की, भावनाओं की मर्यादा बनाये रखते हुए पर्व का आनंद लें, मर्यादित आचरण बनाये रखें, जिससे किसी भी मन के लिए ये त्यौहार कुंठा का कारण ना बने..और कुछ ऐसा करें की हमेशा ये पर्व अपने अच्छी यादों के लिए याद किया जाए, त्योहारों कि गरिमा बनाये रखें, त्योहारों कि इज्ज़त बनाये रखें...ये हमारी धरोहर हैं..और शान भी...
शुभ होली!
-पुष्यमित्र उपाध्याय

Friday, March 18, 2011

ऐसी तबाही फिर ना आये......

जापान में आई सुनामी प्रकृति द्वारा दी गयी एक चेतावनी मात्र है भारत एवं अन्य राष्ट्रों के लिए, कि विकास के नाम पर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन बंद कर दो अन्यथा विज्ञान और तकनीकी विकास का जो डंका पीट रहे हो वो मानव जाति के विनाश का कारण ना बन जाए, मुझे पता है जो मैं लिख रहा हूँ वो सहजता से स्वीकार करने वाली बात नही है, परन्तु भारत में आई सुनामी, अमरीका में आया कैटरीना चक्रवात, और अभी निरंतर ख़त्म होता जापान, समय-समय पर प्रकृति द्वारा दी गयी चेतावनियों की ओर ही इशारा कर रहे हैं|
       आगे बड़ने कि दौड़ लगा रखी है, जब हम ही नही रहेंगे तो विकास का क्या करेंगे, विज्ञान ने बहुत उन्नति की, बहुत कुछ दिया हमें, सहर्ष आभार! पर जितना हो गया बस करो उतना काफी है! जीवन से बड़ा कुछ नही होता, अब वक़्त है कि थोडा सा रुक जाएँ हम, और अपनी नैतिकता एवं सांस्कृतिक विकास के बारे में सोचें, ये भी हो सकता है कि ये सारी बातें मृत्यु का डर मुझसे लिखवा रहा हो, परन्तु ये बात बिलकुल सत्य है कि भारत चाहे कितना भी तकनीकी विकास के पीछे भागे, पर भारत की असली शक्ति है: "परिवार, संस्कार, संस्कृति और सभ्यता" और जिस दिन ये सब भारत ने खो दीं, उस दिन के बाद कुछ ना बचेगा कुछ और खोने को| ये जो आंधियां चल रहीं हैं पश्चिम की ओर से, इन्होने सबसे ज्यादा हमारी इन्ही शक्तियों को कमज़ोर किया है, समय है इन्हें बचा लेने का|
    आज तक मनुष्य खुद को संसार का स्वामी मानता रहा है, और उसी कथित स्वामित्व का लाभ लेकर प्रकृति पे निरंतर अत्याचार करता रहा, परन्तु प्रकृति ये फिर से स्पष्ट कर देना चाहती है की स्वामी अभी भी वही है, इस घटना से उसने मानव को मर्यादित रहने का निर्देश दिया है, और यदि उसे परतंत्र करने के प्रयत्न बंद नही हुए तो ऐसे विद्रोह होते ही रहेंगे, जिनकी निरंतरता संपूर्ण मानव जाति के स्थायित्व को हिला देने वाली होगी और आश्चर्य नही कि कही हम आखिरी पीढ़ी हों??????
      और यदि कोई मेरी इन बातों को बिना प्रमाणित या 'अन्धविश्वास' कहते हैं तो उनसे निवेदन है कि जीवित रहने दो अब हमें, "कुछ की गलतियाँ भुगतने के लिए हम नही हैं!"
                             "ईश्वर दया करे उन लोगों पर जो प्रभावित हुए हैं इस कहर से...."
जीता रहे हिंद! जीता रहे भारत!
                                                                                  -पुष्यमित्र उपाध्याय