Friday, July 1, 2011

सांस्कृतिक प्रदूषण

       एक खबर आई थी पिछले दिनों कि महाराष्ट्र सरकार ने २५ वर्ष से कम आयु वाले लोगों को मदिरा सेवन से वंचित कर दिया है, सरकार के इस फैसले पर एक फ़िल्मी लड़के ने कड़ी आपत्ति व्यक्त की थी, यहाँ तक कि वह इसे न्यायलय तक ले जाने को तत्पर है, इस कारण के साथ कि "यह युवाओं की स्वतंत्रता का हनन है" बड़े आश्चर्य की बात है कि उसके लिए ये अन्याय है, और वह न्याय पाना चाहता है| पर उससे भी ज्यादा आश्चर्य की बात ये है कि इस देश में ऐसी व्यवस्था है भी कि इनकी सुनी जाए..देश के न्यायलय इस पीड़ित की पीड़ा को सुनने के लिए अपना समय देंगे ये आश्चर्य है| आश्चर्य तब ना होता जब उस कुसांस्कृतिक लड़के की
पीठ पर कम से कम हजार कोड़े लगाये जाते, और अपनी लोकप्रियता के दुरुपयोग तथा समाज को गुमराह कर भड़काने का मुकदमा चलाया जाता और टांग दिया जाता! नंगा नाच बना रखा है देश में कि जो आता है हमारी संस्कृति को ही मिटाने चला अता है, एक फैसला जैसे तैसे ये नेता सही ले रहे हैं उस पर भी ऐसी धूर्त आपत्ति? और तमाम कथित-कट्टरवादी खामोश बैठे हैं? नशे को स्वतंत्रता बताता है ये नीचबुद्धि लड़का?
           वह कहता है कि ये कानून समाज के लिए खतरा है! और उसके समर्थन में तमाम अंधे बने युवा पीछे पीछे चल रहे हैं, 'यूथ आइकन' बताते हैं इन दो कौड़ी के लोगो को| भगत सिंह, आजाद, राजगुरु, नेता जी आदि यूथ आइकन क्यों नहीं हैं? जो अपनी जवानी भी पूरी ना जी सके, शहीद हो गये सिर्फ इन लोगों के लिए कि अब ये संभालेंगे भारत माँ को...उनकी शहादत, उनकी कुर्बानी याद नहीं आती? बस इस पाखंडी के मिथ्या बोल याद रहते हैं! कल परसों का आया लड़का ऐसे बयान देने लगा और मीडिया उसे लोकप्रियता दे रही है? कोई सच्चा भारतीय होता तो वही उसका दम निकल देता, सुनकर जिस तरह की वो बातें कर रहा है|
            अब कुछ रहने दोगे इस देश का बाकी या नहीं, ये तो बयान दे कर निकल जायेगा, पर छाप हमारी पीढी पर पड़ती है! बच्चे और युवा बहुत तेजी से बिगड़ रहे हैं,और इन सब का कारण ऐसे ही लोग हैं तो इन्हें फांसी क्यों ना दी जाए, जो कि एक अच्छी पहल चलने पर रूकावट और अपनी धूर्त सोच लिए सामने आ जाते हैं..१४ वर्ष की उम्र तक आते आते किशोर जिन अवसादों का शिकार हो जाते हैं उनके जिम्मेदार भी ऐसे ही लोग हैं| मैं तो मदिरा उत्पादन पर ही प्रश्न रखता हूँ आखिर ये इतनी सुलभता से उपलब्ध क्यों करा दी जाती है? मैं जानता हूँ कि आज मेरे शब्द सीमा से अधिक कटु हैं, पर सच में अब ये देखा नही जाता खून खौल उठता है भीतर से!
            बात सिर्फ इस अधर्मी लड़के की ही नहीं है, बात उस स्त्री की भी है जो दिन प्रतिदिन अश्लील होती जा रही है, मनोरंजन के मंचों से नारी की जो छवि वह प्रस्तुत करती है उसका कुप्रभाव परिवारों के सम्मान, शील, और आचरण पर पड़ता है, और आपत्ति प्रकट किये जाने पर वह सेंसर बोर्ड को समाज का विष बताती है!
    बात उन लेखकों की भी है जो ऐसी पटकथाएं लिखते हैं|
    बात उन निर्देशकों की भी है जो इस अश्लील सोच साकार रूप देते हैं!
    बात उन निर्माताओं की भी है जो अपना धन लगते हैं इस सांस्कृतिक प्रदूषण को बदने के लिए|
              यहाँ सेंसर बोर्ड की भूमिका पर भी संदेह है, प्रश्न मनोरंजन कानून पर भी है ..आखिर होता क्या है ये 'A' प्रमाण पत्र या 'U' प्रमाण पत्र? फिल्म पहुँच तो रही ही है ना दर्शकों में?  दूषित तो कर ही रही है ना समाज को?  उसे १४ साल का बच्चा भी देख रहा है और २४ साल का युवा भी..असर छोटी उम्र पर ज्यादा पड़ता है! बचपन बिगड़ रहा है बहुत ही तेजी से और ये ज्यादा खतरनाक है! ये सब किशोरियों के पहनावे, बोलचाल में द्विअर्थी और अश्लील शब्दों के प्रयोग, मानसिक भटकाव( जिसे वे freedom कहती हैं) और भयानक चारित्रिक हानि के जिम्मेदार ये सब ही हैं! आज इन लोगो के कारण एक सभ्य परिवार एक साथ बैठ कर टेलीविजन नहीं देख सकता! गीतों के नाम पर परोसी जा रही अश्लीलता किसी से छिपी नही है फिर कोई आपत्ति व्यक्त नहीं करता? 
          हाल ही में आया गीत साफ़ तौर पर गंदे शब्दों से भरा है, ये कौन से गीतकार हैं समझ नहीं आता, और संयोग से ये गीत भी उसी लड़के पर फिल्माया गया है जिसके बारे में मैंने ऊपर उल्लेख किया है, इन सब को खड़ा करके गोली मार देनी चाहिए!
         आतंकवाद तो हमारे हाथ में है नहीं पर संस्कृति और सभ्यता तो हाथ में हैं ना? ये हमें ही बचानी होंगी! वरना वो दिन दूर नहीं जब पूजा पाठ, धर्म कर्म और ईश्वर में आस्था रखने वाला 'पापी' कहलायेगा, और समाज से पृथक कर दिया जायेगा..संस्कृति के अर्थ बदल जायेंगे फूहड़ता और नग्नता ना स्वीकारने वाला व्यक्ति 'कुसांस्कृतिक' माना जायेगा..ये हास्य नहीं नहीं है, वर्तमान परिस्थितियां यही इंगित कर रहीं हैं कि बचा लो संस्कृति को, वर्ना राष्ट्र नही बचेगा...
         इन सब बातों से शासन अनभिज्ञ नहीं है, फिर भी उदासीन रवैया रखना, यही दर्शाता है कि बड़ी भूमिका शासन की भी है, या फिर मोटी रकम ले कर चुप बैठे हुए हैं सब....................जय भारत!
 -पुष्यमित्र उपाध्याय

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