Friday, August 26, 2011

अन्ना पर सवाल क्यों?

मुझे इस बात पर बड़ा ही अफ़सोस है कि अन्ना की मुहिम एक बड़ा जनआन्दोलन बनने के बाद भी कुछ "अरुंधती रायों" की भटकाववादी मानसिकता से पिंड नहीं छूट पाया, उनके विचार ये हैं कि ये आन्दोलन भ्रष्टाचार के खिलाफ होने बजाय, महिला एवं दलित आरक्षण और सशक्तिकरण के लिए होता तो अन्ना आदरणीय होते, ये कहने को तो घोर देश चिन्तक हैं किन्तु सच में यह इनके मानसिक दिवालियापन को ही दर्शाता है!
  भ्रष्टाचार के खिलाफ और राष्ट्रवादी मुहिम इन्हें कभी अच्छी लगती ही नहीं है, पता नहीं क्यों? ये सभी वे मौका परस्त लोग हैं जो जबरन कारण निकाल कर, समाज का विभक्तिकरण करने पे तुले रहते हैं! अगर किसी समय पूरा देश एक झंडे के नीचे आ जाए तो ये बातें इनसे हज़म ही नहीं होती, तो फिर अपनी तुच्छ विचारधारा को दिखाने में लग जाते हैं और कभी महिला-पुरुष तो कभी दलित-सवर्ण तो कभी हिन्दू-मुसलमान के नाम पर भड़काना शुरू कर देते हैं|
  बड़े ही घटिया विचार हैं इनके, और बड़े ही घटिया लोग हैं ये, इनकी घटिया मानसिकता का एक उदाहरण है कि फेसबुक के किसी कोने में कुछ लोगों का समूह सक्रिय है, जो दलित वर्ग को बता रहे हैं कि अगर अन्ना की बात मानी गयी तो भीम राव अम्बेडकर के बनाये संविधान का अपमान हो जायेगा! अब इन्हें कौन समझाए संविधान का अपमान असल में कौन कर रहा है? और अगर ऐसा कुछ है भी तो ये भी तो जानो कि ये वही संसद है जो अंग्रेजों ने बनवाई थी, जहां श्री भगत जी ने रोष व्यक्त किया था, और ये वही संविधान है जो इंग्लॅण्ड, आस्ट्रेलिया और अमेरिका के संविधानों से प्रेरित होकर बनाया गया और थोप दिया गया भारतीयों पर| मैं बाबा साहब की खिलाफत में नहीं हूँ पर हाँ उस लिखी हुई पोथा-पत्री के खिलाफ हूँ जो राष्ट्र में स्थिरता ना ला सके, संस्कृति ना बचा सके, उपेक्षित को सहारा ना दे सके, शोषितों को न्याय ना दे सके, भ्रष्टाचार को रोक ना सके, समाज में समता ना ला सके, समग्र विकास ना दे सके और हाँ संस्कृति और राष्ट्रवाद के खिलाफ बोलने वाले ऐसे राष्ट्रद्रोहियों के सर ना कुचल सके...
                     जय भारत! जय माँ भारती!!
                                               -पुष्यमित्र उपाध्याय 'आदित्य'

No comments:

Post a Comment