यूं
तो मैं राजनीति पे ज्यादा टिपण्णी नहीं करता किन्तु, वर्तमान व्यवस्था ने
अव्यवस्था के सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर दिए हैं, अन्याय और अक्रियता ने
देश में जैसे पैर पसारे हैं, उससे कहीं भी ये नहीं लगता कि हम महान बनने
के मार्ग पर कहीं भी हैं| न सिर्फ वर्तमान शासन अपितु न्यायिक संस्थानों ने
भी अपनी जो छवि नागरिकों से समक्ष प्रस्तुत की है, वह हर अर्थों में
निंदनीय है| जनता इतनी निराश और क्षुब्ध है कि ये दबा हुआ क्रोध कहीं एक
तूफ़ान का रूप न ले ले|
हाल ही में लिए गये कुछ फैसले जैसे इतने
बड़े घोटाले के आरोपी कलमाड़ी को लन्दन जाने की अनुमति देना, वहीँ आचार्य
बालकृष्ण की बलपूर्वक की गयी गिरफ्तारी, कानूनन रूप से सही हो सकते हैं
किन्तु जनता की अदालत इन्हें कभी स्वीकार नहीं कर सकती| अन्ना जैसे
व्यक्तियों को आन्दोलन करने तक की जगह नहीं मिली और दूसरी तरफ ऐ.राजा जैसे
भ्रष्ट लोग संसद में दोबारा पहुँच गये, रामदेव को लाठियां मिलती हैं और
निर्मल बाबा को संरक्षा! ये सभी अतार्किक और अन्यायिक गतिविधियाँ ही लोगो
में रोष उत्पन्न करती हैं|
एक ओर अनीतिपूर्ण मूल्यवृद्धि दूसरी ओर
खंडित अर्थव्यवस्था और इन सबसे ऊपर कि इन सब के हल हेतु कोई इच्छाशक्ति
का ना होना| वाकई भारत अपने सबसे खराब दौर में हैं शासन पूरी तरह निष्क्रिय
है, लोकतंत्र का नाम लिए तानाशाही पसर रही हैं, युवा विदेशियों के अनुसरण
पर हैं, विज्ञान ध्वस्त है, आध्यात्म ध्वस्त है, शिक्षा व्यवसाय हो चली है,
ऐसे में किसी बड़े आन्दोलन की जरुरत देश को है जिसका उद्देश्य भारतीयता को
विकसित करना हो|
क्यों कि किसी भी राष्ट्र का उद्धार तभी हो सकता है जब कि तरीके राष्ट्रीय हों ना कि आयातित|.......जय भारत!!
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