Monday, September 3, 2012

एक किस्सा

एक बार विश्व में एक मंचीय गायक हुआ, बड़ा सुप्रसिद्ध गायक! दुनिया भर के कपडे फाड़ने वाले गायक उससे ईर्ष्या करने लगे, असीमित गायन प्रतिभा, अनगिन गायन कलाओं का धनी वह/ ईर्ष्या करने योग्य ही था / अपनी ही खूबियाँ अपनी ही अदाएं/
  मगर एक बार प्रस्तुति देते हुए वह संगीत में ऐसा खोया की स्वयं पर नियंत्रण खोता ही चला गया/ संगीत चीज़ ही ऐसी है, बेसुध कर देने वाली/ मगर वो कुछ अधिक उत्साही हो चुका था/ उन्माद सवार था उस पर/ ये केवल संगीत का प्रभाव नहीं था, ये उसका स्वयं में स्वयं से कुछ अधिक जोड़ने का प्रयत्न था/ कि उसने अपने कपडे उतारना शुरू कर दिए/ अति उन्मादी हो चुका था वह/ हालांकि वह प्रयोगवादी बिलकुल नहीं था, उसके पास अपना सब कुछ था/ बिलकुल मौलिक! किन्तु आज उसका यह रूप लोगों की समझ से परे था/ प्रशंसक पागल हुए जा रहे थे/ जोरों से तालियाँ बज रहीं थी/ शोर बढ़ रहा था..बढ़ता जा रहा था....और बढ़ता जा रहा था उस गायक का उन्माद भी/ वह कपडे फेंकने लगा/ बड़ा गायक था लोग कपड़ों के लिए आपस में लड़ने लगे( बताते हैं कि उसके कपडे बड़े महंगे नीलम हुए)...मगर जब कार्यक्रम ख़त्म हुआ/ तब उसने पाया कि उसके पास तन ढकने को कुछ भी शेष नहीं बचा/ इतने वर्षों की प्रभुता एक झटके में समाप्त हो चुकी थी| जो तालियाँ बजा रहे थे वे उस पर हंस रहे थे/ जो उससे ईर्ष्या करते थे वे बहुत प्रसन्न थे, क्यों कि अब वह भी उन्ही की श्रेणी में आ चुका था|////////////////////////////////////////////////
/////हाँ एक बात बताना भूल गया .......वो गायक कोई और नहीं "भारत का युवावर्ग" था........और वो कपडे उसकी 'संस्कृति' .......................................................©
-पुष्यमित्र उपाध्याय




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