Friday, September 21, 2012

जब तुम आतीं मेरे अंगना

ओढ़े चुनरी, पहने कंगना,
जब तुम आतीं मेरे अंगना,

बस उस पल भर जी लेता जीवन
आगे फिर चाहे मर लेता,
पाकर छुअन तुम्हारी प्रियतम
खुद को पावन कर लेता,

कितने स्वप्न सुहाने देखे
कैसा समय रुका सा देखा,
जब देखा घूंघट में तुमको,
गोरा वो चाँद छुपा सा देखा
काश कि बन पाता मैं बादल
बाहों में चंदा भर लेता
बस उस पल भर जी लेता जीवन
आगे फिर चाहे मर लेता,

मैं देहरी बनकर रहा प्रतीक्षित
तुम अब आओगे अब आओगे
भावों के सूखे बेले को तुम
साँसों से अपनी महकाओगे
जो होती अमर प्रतीक्षा भी ये
मैं भाव चातकी धर लेता
बस उस पल भर जी लेता जीवन
आगे फिर चाहे मर लेता,

-पुष्यमित्र उपाध्याय

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