Saturday, September 8, 2012

प्रेम का लक्ष्य प्राप्ति नहीं

चंद्रमा हमें सुन्दर लगता है/ प्रिय है/ उसकी चांदनी में बैठना सुखद है/ उसके रूप को निहारना आनंददायक है/ उसे प्रेम करना स्वभाविक है/ किन्तु उसे अपने घर में सजाने की इच्छा मात्र एक निराधार हठ है, जो कि दुःख का मूल है/ उस पर कोई भी अपना एकल प्रभुत्व नहीं पा सकता/ ऐसी कामना भी मूर्खता है/
  कभी प्रेम को अभिलाषाओं और महत्वाकांक्षाओं के बिना भी स्वीकार कर देखो....पाओगे कि प्रेम कभी दुखदाई हो ही नहीं सकता/

-पुष्यमित्र उपाध्याय

3 comments:

  1. मित्र भाई,
    सत्य कहा आपने

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  2. You want to say love without attachment!

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  3. Amazing..solution of all prblms in a b.ful poem..

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