Thursday, May 2, 2013

भूकंप

हे भगवान्! ये भूकंप फिर डरा गया, ऐसा लगा जैसे कोई नीचे से कुर्सी छीनने की कोशिश कर रहा हो| अगर कुर्सी छूट जाती तो मैडम को क्या आन्सर देता?
शुक्र है सिर्फ भूकंप ही था, बस जमीनी मामला था| मगर कित्ती बार भी ट्राई कर ले मैं कुर्सी से उतर के नहीं भागूँगा.. हाँ! रुको अभी आने दो पत्रकारों को मैं कड़ी निंदा करता हूँ| आने दो दिग्गी भाई को उनसे भी कहूँगा पता लगाओ किसका हाथ है ये जमीन हिलाने में?
उधर वो बौना पार्टी तम्बू ला ला के लगा रही है, यहाँ लोग मुझसे पूछ रहे हैं कि तम्बू क्यों लगा रहे हैं? मुझे क्या पता क्यों लगा रहे हैं? मैंने क्या हर तम्बू वाले का ठेका ले रखा है? लद्दाख वालो का रीजनल मामला है वो ही जानें; मैं दिल्ली छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा! नहीं जाऊँगा! नही जाऊँगा! बात बात पर कुर्सी मत हिलाया करो, मेरी भी कुछ जवाबदारी है| मैडम से क्या कहूँगा? मगर तुम लोग ज्यादा जिद कर ही रहे हो कि मैं तुम्हारे रीजनल मैटर में इंटरफेयर करूं; तो फिर “मैं इस तम्बू लगाने वाली कम्पनी की कड़ी निंदा करता हूँ” बिना किसी डील के वो तम्बू कैसे लगा सकते हैं? हमने क्या मना किया है लगाने से? वाल मार्ट का भी लगवाया था| मगर डील के बाद|
और वो बिना कोई इन्वेस्टमेंट के तम्बू लगाके बैठ गये जिसका मुझे खेद है| मैं भगवान् से प्रार्थना करूँगा कि अगला भूकंप लद्दाख के उसी उन्नीसवें किलोमीटर पे इत्ता जोरदार आये कि सब टेंट तम्बू सहित बौना पार्टी जमीन में घुस जाए और हाँ किसी तरह वो कोयले वाली फाइल भी उसी में दब जाए
बड़ा परेशान किया है उस फाइल ने| अरे चिन्हा ने मुझे दिखा दी तो क्या बुरा किया? मुझे ही तो दिखाई है कौन सा मुशर्रफ को दिखाई है? आखिर मैंने हेल्प ही तो की उसकी फाइल को करेक्ट करके| सुप्रीम कोर्ट तो मुझे ऐसे डांटने लगता है जैसे मैडम हो| अबकी बार देखियो संसद में प्रस्ताव लाऊंगा कि सुप्रीम कोर्ट को पीऍम के अन्डर किया जाए| फिर मज़ा आएगा जब मैडम सुनाएंगी सुप्रीम कोर्ट को खरी खरी| तब तक ये भूकंप सुप्रीम कोर्ट को डराए मैं कुर्सी छोड़ कर कहीं नही जाऊँगा…बिलकुल भी नही|

-पुष्यमित्र उपाध्याय
एटा

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