Sunday, May 5, 2013

कौन मैं? कैसा मैं

 सुना है साहब ने मामा पद से इस्तीफा दे दिया है, और कोई विकल्प ही
कहाँ छोड़ा था जमाने ने? अब किसी मंत्री को अपने सम्बन्ध भी ठीक से निभाने
नहीं दिए जाते| और वैसे भी जो रिश्वत के मामले में पकड़ा जाए, उससे मंत्री
जैसे पवित्र तत्व का कोई रिश्ता हो ही नहीं सकता.."कौन भांजा कैसा
भांजा"? मैंने सुना है छोटे  भी लपेटे में लिए जा रहे हैं अब लगता है
मंत्री जी को पिता और चाचा पद से भी क्रमशः इस्तीफ़ा देना पड़ सकता है! कौन
बेटा कौन भतीजा? मगर दुविधा तब ज्यादा बढ़ जायेगी जब खबर ये आएगी कि
मंत्री जी भी लपेटे में आ चुके हैं|  तब शायद ये घोषणा करवानी पड़े " मेरा
खुद से कोई वास्ता नहीं है"... "कौन मैं? कैसा मैं?" मैं सिर्फ मंत्री
हूँ बिल्कुल शुद्ध और पवित्र तत्व, मेरा किसी अंसल बंसल से कोई रिश्ता
नहीं|

    यहाँ पार्टी आला कमान भी शोक और विषाद में डूबा है, जल्दी जल्दी
प्रवक्ता भी बदल डाले| बात ही नहीं समझा पा रहे थे दुनिया को! भई हम
कितना हैरान और कलंकित महसूस कर रहे हैं ये हम ही जानते हैं| हमारी
पार्टी का मंत्री ऐसा काम कर ही नहीं सकता| टू जी, कोयला, कॉमनवेल्थ,
इसरो जैसे कीर्तिमान बनाने के बाद इतनी मामूली पारी हमारा आदमी तो खेल ही
नहीं सकता...कैसे मान लें? हमारी पार्टी ने तो 'आदर्श' प्रस्तुत किया है
इस क्षेत्र में| हमारा मंत्री उन कीर्तिमानों की अवहेलना तो कतई नहीं कर
सकता| और अगर ऐसा किया है तो विकलांगों वाली लूट के बाद ये दूसरी सबसे
छोटी पारी होगी| "जिसकी हम कड़ी निंदा करते हैं" ! किसी को भी ये हक नहीं
कि वह पार्टी के आदर्शों को कलंकित करे...चाहे वह कोई भी हो|

 हम हर बात पर मौन रह सकते हैं| मगर ये आचरण बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया
जाएगा| अब इतनी छोटी सी रकम में बटवारा कैसे हो सकता है? शर्म आनी चाहिए
मंत्री जी को, पार्टी में विवाद पैदा करवाना चाहते हैं| और ये सुप्रीम
कोर्ट भी अजीब है, पता नहीं हमारी बिल्ली को कौन सी घुट्टी पिला दी है,
जो हमारे ही पीछे पड़ गयी है| हमारे घर की समस्या थी हम ही साल्व कर लेते|
ना जाने क्या बात है कि हमारे हर काम में दखल देने चले आते हैं| अरे हो
जाने देते प्रमोशन, किसी का भला ही होता| हाँ माल तो कम था मगर ये पार्टी
का अंदरूनी मामला था, हम लोग ऐडजस्ट कर लेते|

  उधर वो विपक्ष! हे भगवान्...बात बात पे इस्तीफ़ा दो! क्यों दें भई?तुमसे
लिया था क्या हमने मंत्रालय? जैसे और कुछ तो है नहीं हमारे पास देने को?
इस्तीफा दो! इस्तीफ़ा दो! ये भी कोई बात हुई? कुछ और ले लो मगर चुप्प रहो|
वैसे भी तमाम जमाने की टेंशन है हमें| चुनाव सर पे है, फण्ड ना जुटाएं तो
क्या करें? तुम्हे इस्तीफ़ा दे दें तो क्या तुम हमारी तरफ से पैसा
बांटोगे? चुनाव में कार्यकर्ता पनीर मांगेंगे तो क्या तुम खिलाओगे? सरकार
की अपनी समस्याएं होतीं हैं, राजनीतिक मजबूरियाँ होतीं हैं| सोच समझ कर
निदान किया जाता है| ऐसे ही थोड़ी भांजे ने कुर्बानी दी? अभी हम सिर्फ इस
बात पे फोकस कर रहे हैं कि मंत्री जी ने इतनी छोटी रेलगाड़ी तो नहीं चलाई
होगी, इससे पहले वो कितने प्रमोशन्स को ग्रीन सिग्नल दे चुके हैं इस बात
पर भी रोज़ बैठकें हो रहीं हैं| हम उम्मीद करते हैं कि मंत्री जी ने इतना
तो किया होगा जिससे पार्टी के रिकॉर्ड और नाक दोनों बचे रहें| और हाँ
इस्तीफ़ा बिल्कुल नहीं देंगे...बिल्कुल भी नहीं....मांगना भी मत|

-पुष्यमित्र उपाध्याय
     एटा

1 comment:

  1. अच्छा व्यंग है लेखनी में धार आती जा रही है ।

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