कभी महसूस करना
रिश्तों की डोर रबर की होती है
या रिश्ता ही रबर का होता है
जितना दूर जाओगे...खिंचाव बढेगा
दोनों सिरे एक दूसरे से मिलने को और बेताब होंगे
यूं कि मानों छोड़ देने पर,
सब दूरियों को मिटाते हुए जा मिलेंगे एक दूसरे से
जितनी दूरी....... उतनी मिलने की बेताबी......
मगर ये बेताबी बढ़ते बढ़ते,
जब आदत बन जायेगी
तो टूट जायेगी रबर की डोर
कभी महसूस करना
रिश्ते रबर के से होते हैं.....
पुष्यमित्र उपाध्याय
रिश्तों की डोर रबर की होती है
या रिश्ता ही रबर का होता है
जितना दूर जाओगे...खिंचाव बढेगा
दोनों सिरे एक दूसरे से मिलने को और बेताब होंगे
यूं कि मानों छोड़ देने पर,
सब दूरियों को मिटाते हुए जा मिलेंगे एक दूसरे से
जितनी दूरी....... उतनी मिलने की बेताबी......
मगर ये बेताबी बढ़ते बढ़ते,
जब आदत बन जायेगी
तो टूट जायेगी रबर की डोर
कभी महसूस करना
रिश्ते रबर के से होते हैं.....
पुष्यमित्र उपाध्याय
exactly
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ReplyDeleteGood imagination.
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