Sunday, June 30, 2013

हम निंदा करते हैं!

कई दिनों तक कई लोगों की प्रतिक्रियाएं देखीं, ऐसा लग रहा था कि जैसे उन्हें इस आपदा पर पीड़ा तो बाद में हुई मगर ऐसे अवसर का इंतज़ार पहले से था | कई लेखकों के विषयों में आया अकाल ख़त्म हुआ, तो कुछ कवियों ने नई रचनाएँ सृजित कर डालीं| तो आलोचकों ने तो राजनीति को निर्वस्त्र करने का बीड़ा संभाल लिया!
 राजनीतिज्ञों के बारे में तो कहना ही बेकार है, मगर घोर निंदकों जिनके कि निंदा करते करते सर के बाल तक उड़ गये हैं, राजनीती से अलग "वालनीति" करते नज़र आये! अपने पोस्ट पर आते हुए लाइक्स और कमेंट्स से वे इतना उत्साहित दिखे कि पता ही नहीं चला कि उन्होंने इस निंदा-दाल में प्राकृतिक आपदा के साथ सेकुलरिज्म, माओवाद, तीसरा मोर्चा आदि वाला जीरा कहाँ से छौंक दिया!
  कई लोग आरोप प्रत्यारोप कर रहे थे, कुछ लोग कांग्रेस को गाली दे रहे थे, कुछ लोग इस आपदा का जिम्मेदार भाजपा को ठहरा रहे थे, कुछ अतिउच्च श्रेणी वाले मोह्त्यागी संत बारी बारी से दोनों को ही जिम्मेदार ठहरा रहे थे| कुछ कह रहे थे कि संतों ने भविष्यवाणी नहीं की, संत ख़राब हैं| कुछ बोले कि कोई राजनेता मदद करना नहीं चाहता, सब पाखंडी हैं| मगर जो मदद को आगे आये, उनपर राजनीति करने का आरोप लगा कर नकार दिया|  ये लोग आखिर कौन हैं जो सत्यता का प्रमाण पत्र बांटते फिरते हैं| शायद ये वो लोग हैं जो फेसबुक से उठने तक की जहमत तक नहीं उठाते, इन सभी चिंतकों का भाषणबाज़ी के अतिरिक्त क्या दायित्व हैं इन्हें नहीं पता...पता हों भी तो वे जताना नहीं चाहते कि इन्हें पता है|
  बात साफ़ सी है, मनुष्य ने अपनी सीमाएं तोड़ीं थी, उसका उत्तर प्रकृति ने दे दिया, प्रकृति अपना काम कर रही है, सेना और बचाव दल अपना काम कर रहे हैं, राजनीतिक दलों का काम राजनीति करना है, वे अपना काम कर रहे हैं| समाचार चैनल वालों का जो काम है वो ज्यादा बढ़ कर, कर ही रहे हैं|
  मगर आपने क्या किया? आप किस अधिकार और किस साक्ष्य के आधार पर संतों आदि पर धन सम्बन्धी समीक्षा कर रहे हैं? क्या संत अपना काम नहीं कर रहे? क्या संघ और अन्य संगठन निष्क्रिय बैठे हैं? क्या अखबार निष्क्रिय बैठे हैं? क्या सरकारें निष्क्रिय बैठी है? हाँ प्रबंधन में थोड़ी चूक हुई, वो भी राज्य सरकार की लाभ लेने की मंशा के कारण, जिसे आपदा प्रबंधन मंत्री ने स्वीकार भी किया | मगर अभी तक कोई घोटाला होना या गबन होना सामने नहीं आया, लेकिन पूरी तरह इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता| फिर भी आपको ये कतई अधिकार नहीं कि आप अपनी ख्याति चमकाने के लिए जो जी में आये वो जानकारी उत्पन्न कर दो | यहाँ जरुरत थी सौहार्द और एकता प्रदर्शित कर के जवानों, राजनीतिज्ञों और सहयोगियों के हौसलों को बढाने की| मगर ऐसी कोई भूल निंदकों ने नहीं की| उन्हें जो मिला जैसा समझ में आया उन्होंने वो प्रचार किया| ये निहायत ही बेहूदा और अप्रशंश्नीय कृत्य है!
  एक उदाहरण रामदेव से सम्बंधित है: निंदक पहले बोले कि रामदेव कहाँ हैं? जब रामदेव को सक्रिय पाया तो बोले, कि उन्होंने क्या योगदान किया, जब योगदान उजागर हुआ तो पतंजलि का सालाना टर्नओवर निकाल लाये और बोले कि ये पैसा ठीक से नहीं दे रहे|
 परिणाम स्वरुप लोग जो राहत राशि देने के लिए आगे आ रहे थे, उन्होंने विभिन्न माध्यमों को संशय की द्रष्टि से देखा!
रामदेव सिर्फ उदाहरण मात्र हैं, इसी तरह एक नियोजित ढंग से हर किसी पर कीचड उछालना जारी था, हालांकि कुछ "राजनीति कुमारों" को फुर्सत वास्तव में नहीं मिली थी| मगर फिर भी निंदकों ने हर संगठन के प्रति  अविश्वास और गलत मंशा का जो भाव संचारित किया वो ठीक नहीं था| जब देश में आपदा आई हो तो अधिकतम मदद और सहयोग को धन्यवाद के साथ स्वीकार किया जाना चाहिए, चाहे फिर वह परायों द्वारा ही क्यों न दी गयी हो क्यों कि उस समय देशवासियों का हित सर्वोपरि होता है | ऐसे में संस्थाओं पर आरोप लगाना, बदनाम करना एक उदासीन रवैये को जन्म देने जैसा ही है| कई लोग पीछे हट जाते हैं ये सोच कर कि कहीं हमारी मंशा पर भी प्रश्न ना खड़े हो जाएँ! जब कि होना ये चाहिए कि प्रतियोगी माहौल उत्पन्न किया जाए, दान दाताओं का हौसला बढाया जाए जैसा कि कुछ अखबार कर भी रहे हैं| जिससे लोग होड़ लगा कर मदद करें| और अधिक से अधिक राहत सामग्री जुटाई जा सके!

-पुष्यमित्र उपाध्याय


Friday, June 7, 2013

जाग-जाग कर गदहे हारे, विजय कहो कब पाई है
सोवत सोवत सिंह भये नृप, जग ने कीरति गाई है

Tuesday, June 4, 2013

आसमाँ पर नजर रखते है हम


रात का भूला हिस्सा

रात जवां होके ढलने को है
हवा हर अदा खेल चुकी
तारों ने समेट ली नुमाईश अपनी
चाँद ने भी ढूंढ़ लिया एक कोना
बारात लौट जाने के बाद उतरने लगती है जैसे रौनक
सिमटने लगतीं हैं झालरें
अजीब सा सन्नाटा पसरा है सड़कों पर
कोने गूंजते हैं
जैसे किसी खूंखार जानवर के नुकीले दांतों से गुज़रती हुई साँसों का शोर
जैसे कराहता कोई परिंदा
ना नींद ....न बेचैनी
बस वक़्त का एक टुकडा
रात का एक हिस्सा
कहानियों में उपेक्षित
प्रेम से निष्कासित
कविताओं से भूला
ये पहर
देखता हूँ रात को भी इस वक़्त में तनहा
देखता हूँ मौन को चीखते हुए.....

-पुष्यमित्र उपाध्याय