Saturday, July 13, 2013

उन लम्हों को,
लिखता था पन्नों पर मैं;
कुछ लिख कर छोड़ देता था...
कि फिर कभी
फुर्सत में कर दूंगा पूरा इन्हें/
भर दूंगा उन लम्हों को उठा कर इन पन्नों में/
वो पन्ने, वो लम्हे..
आवाज़ देकर बुलाते थे,
कई बार उठाये थे वो पन्ने मैंने...
पढ़े भी थे...उन लम्हों के अधूरे चेहरे/
मगर फिर छोड़ दिए;
फिर कभी के लिए !
ऐसे न जाने कितने पन्नों को,
फिर कभी का भरोसा देकर बढ़ता रहा मैं...
मगर
कई दिनों से कोई आवाज़ नही देता!
कोई बुलाता नहीं है!
ढूंढ़ता हूँ...
देखता हूँ...
पर कोई नहीं दिखता...कोई नही मिलता..
न वो पन्ने... न वो लम्हे
सब खो गये हैं शायद
कहाँ ढूंढू....कहाँ देखूं
गुज़रे हुए वो लम्हे....
और अब
ये कह कर उन्हें ढूंढना भी छोड़ दिया मैंने
....कि फिर कभी
फुर्सत में ढूंढ़ लूँगा इन्हें

-पुष्यमित्र उपाध्याय

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