Friday, October 25, 2013

रागा के राग औऱ नमो की नमः

     राहुल गांधी निस्संदेह अब मात्र नेता नहीं रहे हैं, वे एक समस्या बन गये हैं| न सिर्फ अपनी ही पार्टी के लिए बल्कि अपनी पारिवारिक प्रतिष्ठा  के लिए भी| ऐसा लगता है कि नमो फीवर ने उन्हें इस तरह जकड़ा हुआ है कि वे क्या बोल रहे हैं; किस स्तर पर बोल रहे हैं; इसका उन्हें खुद ही ख्याल नहीं| कभी वे अपने ही प्रधानमंत्री का अपमान करते नज़र आते हैं तो कभी ऊटपटांग भाषण देते हुए| कुछ समय पहले तक खुद कांग्रेस  ही राहुल गांधी को नमो के विरुद्ध सीधे तौर पर उतारना नहीं चाहती थी| मगर लगता है या तो कांग्रेस में कोई प्रधानमंत्री मटीरिअल बचा ही नहीं है या फिर जो राहुल बोल/कर रहे हैं वही उनका स्वीकृत स्तर हो चुका है|
 हाल ही में दिए गये ISI वाले बयान से राहुल गांधी एक साथ कई प्रश्न खड़े कर गये, एक तरफ जहाँ उन्होंने देश के मुसलमानों की निष्ठा पर शंकात्मक प्रश्न लगाये वहीँ दूसरी ओर उन्होंने इस बात को हवा दे दी, कि उनकी सत्ता के दौरान देश की सबसे गोपनीय संस्थाओं में किस हद की लापरवाही पसर चुकी है| CBI की स्वतंत्रता पर पहले भी लोग प्रश्न उठाते रहे हैं| किन्तु अब मामला देश की ख़ुफ़िया एजेंसियों का है| सवाल जायज़ है कि देश की इंटेलिजेंस राहुल गांधी को किस आधार पर सूचना दे सकती है? और सूचना नहीं भी दी गयी है तो इस झूठ के ज़रिये वे मुसलमानों पर शक करके क्या सिद्ध करना चाहते हैं|
   हालांकि ये बात औऱ है कि उनकी पार्टी के लोग उनसे प्रश्न पूछने की हिम्मत न रखते हों, मगर अब विपक्ष के पास मौका भी है और माहौल भी| अब ये मौका किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं राहुल ने उन्हें दिया है| राहुल के भाषणों से साफ़ है कि कांग्रेस के पास चुनाव प्रचार हेतु कोई ठोस माल है ही नहीं| कभी वे भावनात्मक कहानियों का सहारा लेते हैं, तो कभी वोटमंशा से पारित आधे अधूरे अधिकारों का बखान करते हैं| उनके पास एक शानदार इतिहास भले हो किन्तु उस इतिहास के थोथे होने की पोल उनका वर्तमान स्वयं खोल रहा है| राहुल गांधी उस तरह अपने प्रधानमंत्री होने की दावेदारी प्रस्तुत कर रहे हैं जिस तरह 1992 में विश्वकप जीतने वाले इमरान खान के पुत्र कहें कि मुझे आज चैम्पियन घोषित दिया जाए| विश्वकप हर निश्चित समयांतराल बाद होता है, और हर बार वही विजेता होता है जो विजेता होने की योग्यता रखता है| इतिहास के आधार पर वर्तमान के विजेता नहीं चुने जाते| राहुल को यह सिद्ध करना चाहिए कि वर्तमान में वे क्या हैं और भविष्य में क्या कर सकते हैं| इस मामले में वे नमो के आगे कहीं नहीं ठहरते, वे तो क्या किसी भी कांग्रेसी नेता का कद नमो के आगे बौना ही है| यह खुद कांग्रेस का किया-धरा है| वे राजपरिवार के अतिरिक्त किसी को प्रभाव में आने देना ही नही चाहते| सच तो यही है कि राहुल के अलावा कांग्रेस के पास कोई प्यादा भी नहीं बचा है जिसे प्रधानमंत्री पद हेतु प्रस्तावित किया जा सके|
         कांग्रेस के पास अब न तो मुद्दे बचे हैं और ना ही आधार जिन्हे लेकर वे जनता के बीच वोट मांग सकें| हिंदुओं को वे अपने इतिहास से लुभाना चाहते हैं, तो मुसलमानो को गुजरात 2002 का भय दिखाकर| किन्तु इस बार ये दांव भी उल्टा पड़ गया और ऊपर से भाजपा द्वारा बहुत समय बाद सिख दंगों की चर्चा छेड़ देना और भी मुश्किल भरा हो गया है| जिस सेकुलरिज्म के सहारे वे भाजपा को घेरना चाहते थे, अब उन्हें स्वयं ही इस पर जवाब तलाशना पड़ रहा है| सिर्फ यही मुद्दा नहीं कांग्रेस के परिवारवाद ने ही खुद भाजपा को अपनी किरकिरी के अवसर दिए हैं| अक्सर मिलने वाले कांग्रेसी कार्यकर्ताओं औऱ NSUI के सदस्यों की यही दुविधा है कि वे अब जनता के बीच जाकर किस बात का प्रस्तुतिकरण करें?
      एक तरफ राहुल गांधी हैं जो परम्पराओं के बहाने राजनीति करते हैं, वहीँ दूसरी तरफ मोदी हैं जो तमाम राजनीतिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए आगे बढ़ रहे हैं| एक तरफ कांग्रेस है जिसके पास इतिहास के अलावा कोई ख़ास उपलब्धियां नहीं, दूसरी तरफ भाजपा है जिसके पास वाजपेई जैसा गौरवशाली इतिहास भी है औऱ नमो जैसा धुआंधार वर्तमान भी|  ऐसे में हो सकता है कि सोनिया को खुद मोर्चा सम्भालना पड़े, मगर इसके बाद राहुल गांधी का राजनीतिक भविष्य कहाँ जाएगा, ये तो वे ही जानें|

-पुष्यमित्र उपाध्याय
एटा

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