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"तुम ही कब तक प्राण तजोगी, बने पद्मिनी जौहर कर? या कितने ही प्रण बांधोगी खुले हुए इन केशों पर?"बहुत सुन्दर प्रयास है और हिम्मत करो खंड काव्य बन सकता है
"तुम ही कब तक प्राण तजोगी, बने पद्मिनी जौहर कर? या कितने ही प्रण बांधोगी खुले हुए इन केशों पर?"
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रयास है और हिम्मत करो खंड काव्य बन सकता है