Wednesday, September 10, 2014


1 comment:

  1. "तुम ही कब तक प्राण तजोगी, बने पद्मिनी जौहर कर? या कितने ही प्रण बांधोगी खुले हुए इन केशों पर?"

    बहुत सुन्दर प्रयास है और हिम्मत करो खंड काव्य बन सकता है

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