Wednesday, October 15, 2014






ना मिल सका कभी ही जो करार चाहिये था,
वो शख्स हमेँ हम पर निसार चाहिये था..

दिल लीजे दिल दे दीजिये, है तो यही उसूल,
पर तुझे तो इश्क मेँ भी उधार चाहिये था..

तुझे तोडने की कभी भी चाहत ना थी मेरी,
हाँ पर मुझे ऐ चाँद तू बेकरार चाहिये था..

तो ये हुआ कि यार हम मिलकर भी ना मिले,
तुम चाहते थे दिल, मुझे दिलदार चाहिये था..

-पुष्यमित्र
दूर साँझ के कोने मेँ,
एक कहानी सिमटी है..
जाने क्यूँ इस सूरज को,
छुप जाने की जल्दी है..
रुठे रुठे कदमोँ से,
घर को वापस जाना है..
घर जाकर थक जाना है,
और थक कर सो जाना है..
आधी नीँद है कच्ची सी,
आधी नीँद है पक्की सी..
दिनभर के सब किस्सोँ से,
कितने ख्वाब बनाने हैँ..
कम लम्हे हैँ नीँदो के,
बडे काम मेँ लाने है...
फिर आगे पूरा दिन है
और कॉलेज की छुट्टी है...
दूर साँझ के कोने मेँ, एक कहानी सिमटी है...

-पुष्यमित्र
जुनून हो गया है बेज़ुबान क्या,
इश्क ले रहा है इम्तेहान क्या?

लो बिछड रहे हैँ अब सच मेँ हम,
कहीँ गिर रहा है आसमान क्या?

एक तो ये तुम्हारे नखरे बहुत हैँ,
इन नखरो से ले लोगे जान क्या?

क्यूँ ना मिल सका हमेँ हमनशीँ कोई ?
क्यूँ बावफा थे सब इंसान क्या?

खाक उडाती है अब हवा उस गली मेँ,
तो अब खाली है वो मकान क्या?

-पुष्यमित्र
जिन्दगी कभी तू भी कर ले, ये इज़हार कुबूल..
मैँ कब से कह रहा हूँ, बड़ी महब्बत है तुझसे..
न मालूम क्या तिरे मान-ओ-फितरत थे?
हम तेरी चाह थे या कोई जरुरत थे?

मेरे हिस्से मेँ न था वजूद भी मेरा,
हँसी आती है क्या दौर-ए-गुरबत थे..

तुम्हेँ किस तरह भूल जाऊँ मैँ आखिर,
तुम तो मेरी पहली मुहब्बत थे!

तुमसे जब मिला मुस्करा के मिला मैँ,
दर्द के भी क्या हाल-ए-जलालत थे!

क्या याद है तुम्हेँ, बहुत शैतान था मैँ,
और तुम, तुम बहुत खूबसूरत थे.......!
और तुम बहुत खूबसूरत थे....

-पुष्यमित्र
आलम मेँ जलजले उठे या तूफान आये..
हम जो हदोँ को तोडकर दिल के जहान आये..

वो आ सके ना आज भी होगी कोई वजह,
दिल के गुमान लौट कर सब बेजुबान आये..

जाने के किस नसीब मेँ हो आपकी नज़र,
अपने नसीब-ए-दीद मेँ बस आसमान आये..

कब तक रहोगे दिल मेँ तुम बनकर यूँ गैर के,
ऐ जाँ चले भी जाओ अब, कि अब ये जान आये,

मंजिल मिले या ना मिले ,उस राह ले चलो,
जिस राह पर कि ऐ जुनूँ उसका मकान आये..

-पुष्यमित्र