जुनून हो गया है बेज़ुबान क्या,
इश्क ले रहा है इम्तेहान क्या?
लो बिछड रहे हैँ अब सच मेँ हम,
कहीँ गिर रहा है आसमान क्या?
एक तो ये तुम्हारे नखरे बहुत हैँ,
इन नखरो से ले लोगे जान क्या?
क्यूँ ना मिल सका हमेँ हमनशीँ कोई ?
क्यूँ बावफा थे सब इंसान क्या?
खाक उडाती है अब हवा उस गली मेँ,
तो अब खाली है वो मकान क्या?
-पुष्यमित्र
इश्क ले रहा है इम्तेहान क्या?
लो बिछड रहे हैँ अब सच मेँ हम,
कहीँ गिर रहा है आसमान क्या?
एक तो ये तुम्हारे नखरे बहुत हैँ,
इन नखरो से ले लोगे जान क्या?
क्यूँ ना मिल सका हमेँ हमनशीँ कोई ?
क्यूँ बावफा थे सब इंसान क्या?
खाक उडाती है अब हवा उस गली मेँ,
तो अब खाली है वो मकान क्या?
-पुष्यमित्र
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