Wednesday, October 15, 2014

दूर साँझ के कोने मेँ,
एक कहानी सिमटी है..
जाने क्यूँ इस सूरज को,
छुप जाने की जल्दी है..
रुठे रुठे कदमोँ से,
घर को वापस जाना है..
घर जाकर थक जाना है,
और थक कर सो जाना है..
आधी नीँद है कच्ची सी,
आधी नीँद है पक्की सी..
दिनभर के सब किस्सोँ से,
कितने ख्वाब बनाने हैँ..
कम लम्हे हैँ नीँदो के,
बडे काम मेँ लाने है...
फिर आगे पूरा दिन है
और कॉलेज की छुट्टी है...
दूर साँझ के कोने मेँ, एक कहानी सिमटी है...

-पुष्यमित्र

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