Friday, November 28, 2014


पीली पीली धूप सुबह की
और कालेज के बरामदे में चमकता वो चेहरा
सबसे अलग सबसे ख़ास
और मैं कि अपनी मामूली सी शक्ल को
बार बार संवारता, बार बार देखता आईने में
कि ना जाने किस तरफ से उसकी निगाह पड़े
न जाने किस तरफ से उसे कुछ ख़ास दिख जाए
उसको खास चेहरे ही पसंद थे
ख़ास दिखने का शौक मुझे उसके लिए
खुद में मिटने का शौक मुझे उसके लिए
ये शायद जिद हो फितूर हो
गुमान हो गुरुर हो
मगर कोशिश यही थी
कि वो बस हो, जरुर हो
क्लास के किसी एक कोने से निहारता था उसे दिन भर
.कि कभी तो कुछ असर हो..कि कभी तो एक नज़र हो.
जैसे खुद की खींची लकीरों से बाहर आया करती थी
मेरी बातों पे अक्सर वो हंस जाया करती थी
मैं न जानता था कि मेरी तमन्ना क्या है
 उसे खोना क्या है, पाना क्या है
कि जैसे उसका हंस जाना ही पाना हो
इत्तेफाकन ही सही
उसका देख लेना ही मिल जाना हो
इसी पाने इसी खोने में वो वक़्त भी खो गया
न अब धूप खिलती है
न वो चेहरा मिलता है
न ख़ास दिखने की तमन्ना ही होती है
और मैं आज भी इसी उम्मीद में
कि फिर सजेगी महफ़िल, फिर बिछेंगे वो दिन
 फिर होंगे मुखातिब हम एक और नये अंदाज़ से, एक और आगाज़ से
कि इस बार खोना न होगा
इस बार मिलना होगा , मगर मिलना इत्तेफाकन न होगा
कि किसी रोज़ तोड़ कर वो अपनी लकीरों को बाहर आ जायेगी
कि किसी रोज़ तो ख़ास हो जाऊँगा मैं...
इसी फितूर में गुजरता हूँ आज कल मैं..........

-पुष्यमित्र

Friday, November 21, 2014

जुनून हो गया है बेज़ुबान क्या,
इश्क ले रहा है इम्तेहान क्या?

लो बिछड रहे हैँ अब सच मेँ हम,
कहीँ गिर रहा है आसमान क्या?

एक तो ये तुम्हारे नखरे बहुत हैँ,
इन नखरो से ले लोगे जान क्या?

क्यूँ ना मिल सका हमेँ हमनशीँ कोई ?
क्यूँ बावफा थे सब इंसान क्या?

खाक उडाती है अब हवा उस गली मेँ,
तो अब खाली है वो मकान क्या?

-पुष्यमित्र
जहाँ जहाँ तक धूप के पाँव,
जहाँ जहाँ तक नभ की छाँव......
वहाँ वहाँ तक खोया तुमको,
वहाँ वहाँ तक तुमको पाया.....
याद का सिलसिला है आ जाओ..
अब तो अरसा हुआ है आ जाओ..

दूर तक है मलाल-ए-वीरानी,
चाँद तनहा चला है आ जाओ..

शहर-ए-दिल मेँ तुम्हारी यादोँ का,
शोर सा इक उठा है आजाओ..

इक तुम्हारी ही नज्र होने को,
गुल वो अब भी खिला है आ जाओ..

दर्द वो जिसके रहनुमा तुम हो,
आज रुसवा हुआ है आ जाओ..

खत्म होने को है कहानी अब,
आख़िरी ये सफ़ा है आ जाओ..

-पुष्यमित्र
मानता हूँ ये बहुत है फासला उन से..
फिर भी दिल को है कोई वासता उन से..

उनसे हैँ ये रंज-ओ-गम दुश्वारियाँ हैँ बडी..
पर सुकून-ए-रुह भी तो है अता उन से..

जिँदगी थम जा यहीँ, थम जाओ धडकनो,
अभी..अभी ही हो गया है सामना उन से...

दिल ने तो अब हर सितम उनका भुला दिया,
हमको फिर होगा ही क्या कोई गिला उनसे...

वो हमेँ ना मिल सके इसका मलाल क्या?
हमको तो हाँ मिल गया अपना पता उन से..

-पुष्यमित्र
मैंने नहीं देखा,
मुड कर कभी......
एक झेंप थी बस ...
कि कंही तुम भी ना देख रही हो ..
एक टक मुझे जाते हुए
डरता था ...
डरता हूँ कि कहीं तुम्हारी नज़रों से हौसला पाकर तोड़ ना दूं
ये खामोशी...
...जिसे जीना अब
बहुत जरूरी है....मेरे लिए
और
तुम्हारे लिए भी ..
मैँ तो निकल आया हूँ खुद से बहुत आगे,
तुम अब बहुत पीछे रह गये जानाँ ।
एक यही तो मलाल ए जिँदगी है कि,
काश होते हम तुम्हारी तरह के जानाँ।
खिडकी के उस पार
उठ रहा है हल्का हल्का कोहरा,
छूटती जा रही है सडक,
छूटती जा रहीँ है कई कहानियाँ पीछे,
किस कहानी मेँ नहीँ हो तुम?
किसी मंजर पर जमा के नजरेँ देखता हूँ तुम्हेँ,
और इतने मेँ वो मंजर भी छूट जाता है पीछे..
गुजर जाता है..
मैँ जानता हूँ शहर तुम्हारा, घर, पता सब।
फिर भी तलाशता हूँ हर जगह,
ना जाने कितना थे तुम
ना जाने कितना खोया है तुम्हेँ मैँने...!
ना जाने क्या वक़्त, क्या ज़माना होगा
तुम्हारे होठों पे जाने क्या तराना होगा

अभी तो तमाम हैं तुमसे मिलने के सबब
इक वक़्त बाद कुछ भी न बहाना होगा

न जाने कौन सा दिन फिर मुकम्मल हो
जब तेरे चेहरे का नज़र आना होगा

तुम्हारे बस में हुआ तो ठहर जाओगे तुम
मेरा बस तो अज़नबी सा गुज़र जाना होगा

तुम्हारे नूर पे कई चाँद खिल चुके होंगे
मेरे तो जुनून को भी उतर जाना होगा

तुम्हारे गैर होने पर होगी घुटन मुझको
मगर ये तय है कि मुस्कुराना होगा

इसी ख्याल में आजकल बीत जाता हूँ मैं
किस हद तक आखिर ये सब निभाना होगा

-पुष्यमित्र उपाध्याय