blog by Pushyamitra upadhyay
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Friday, November 21, 2014
मैंने नहीं देखा,
मुड कर कभी......
एक झेंप थी बस ...
कि कंही तुम भी ना देख रही हो ..
एक टक मुझे जाते हुए डरता था ... डरता हूँ कि कहीं तुम्हारी नज़रों से हौसला पाकर तोड़ ना दूं ये खामोशी... ...जिसे जीना अब बहुत जरूरी है....मेरे लिए और तुम्हारे लिए भी ..
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