Friday, November 21, 2014

याद का सिलसिला है आ जाओ..
अब तो अरसा हुआ है आ जाओ..

दूर तक है मलाल-ए-वीरानी,
चाँद तनहा चला है आ जाओ..

शहर-ए-दिल मेँ तुम्हारी यादोँ का,
शोर सा इक उठा है आजाओ..

इक तुम्हारी ही नज्र होने को,
गुल वो अब भी खिला है आ जाओ..

दर्द वो जिसके रहनुमा तुम हो,
आज रुसवा हुआ है आ जाओ..

खत्म होने को है कहानी अब,
आख़िरी ये सफ़ा है आ जाओ..

-पुष्यमित्र

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