दिलों के ये पत्थर पिघलने तो दो .............ज़रा होश अपने संभलने तो दो
चमन तो ये सारा जला ही दिया..... किसी गुल को थोड़ा सा खिलने तो दो
अंधेरों से डरते हैं सब ही यहां............... ज़रा सा ये सूरज निकलने तो दो
ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी... मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो
-पुष्यमित्र उपाध्याय
चमन तो ये सारा जला ही दिया..... किसी गुल को थोड़ा सा खिलने तो दो
अंधेरों से डरते हैं सब ही यहां............... ज़रा सा ये सूरज निकलने तो दो
ये आँखें ही कल की हकीकत रचेंगी... मगर आज ख्वाबों को पलने तो दो
-पुष्यमित्र उपाध्याय
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