Monday, December 29, 2014

मैंने आस नहीं छोडी है, तुम में लय हो जाने की.
तुम से फिर मिल जाने की, तुम में फिर खो जाने की...
तुम नदिया मैं नाव सरीखा
मेरे मन में नहीं किनारे
क्या गंतव्य है कौन खिवैया,
मेरे पथ हैं तुम में सारे
मेरी कोशिश बहते-बहते, तुम में ही खो जाने की,
मैंने आस नहीँ छोडी है.......

शत शत योजन तुमसे दूरी,
पंथ सदा तकते रहना है...
सात जन्म तक प्रीत अधूरी,
पल-पल को गिनते रहना है..
यही चाह पल गिनते गिनते, स्वयं समय हो जाने की
मैंने आस नहीँ छोडी है,.........................
तुम में लय हो जाने की.
-पुष्यमित्र

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