जैसे घाव पर फूँक गर्म सी लगती है
उसी तरह शायरी अच्छी लगती है
उसी तरह शायरी अच्छी लगती है
मुझसे मिलता है वो अब भी तल्खी से
मगर आज कल कुछ तो नमी लगती है
मगर आज कल कुछ तो नमी लगती है
तुम्हें जीतने का जुनूँ गया नहीं मेरा
बस धडकन ही हार चुकी लगती है
बस धडकन ही हार चुकी लगती है
ये तुम्हारी नज़र वो मेरी दीवानगी
छोडो बहुत हुआ सब पुरानी लगती है
छोडो बहुत हुआ सब पुरानी लगती है
ये लो ये आखरी मिसरा भी गया
ये लो ये बात भी खत्म हुई लगती है
ये लो ये बात भी खत्म हुई लगती है
-पुष्यमित्र
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