ख़त्म दिल से दिल्लगी हो गयी होती
ज़िंदगी भी क्या ज़िंदगी हो गयी होती ?
ज़िंदगी भी क्या ज़िंदगी हो गयी होती ?
जज्बों को हो आया फिर ये तक मंज़ूर,
कि तुमसे बस दोस्ती ही हो गयी होती
कि तुमसे बस दोस्ती ही हो गयी होती
ना हुए होते आबाद दर्द के ये अंधेरे,
तबाह महफिल की रौशनी हो गयी होती
तबाह महफिल की रौशनी हो गयी होती
काश! न किया होता इश्क को झूठा तूने,
काश! कि झूठी हर शायरी हो गयी होती
काश! कि झूठी हर शायरी हो गयी होती
-पुष्यमित्र
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