और कितनी है जुदाई पता तो चले
वो मेरी है या पराई, पता तो चले
यूं बहारों पे कब्ज़ा यूं फिजाओं पे हुक्म
अदा ये किसने सिखाई पता तो चले
कँवल खिलने लगे अब्र जलने लगे
किसने ले ली अंगडाई पता तो चले
ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है
ये कली क्यों बलखाई पता तो चले
चाँद खिलने लगा गुल महक से गये
मेहँदी किसने रचाई पता तो चले
खोलकर आज गेसू वो मुस्कुरा गये
मौत किसपे है आई पता तो चले
गनीमत यही उन्हें मुहब्बत तो हुई
कुछ उन्हें भी तन्हाई पता तो चले
-पुष्यमित्र उपाध्याय
वो मेरी है या पराई, पता तो चले
यूं बहारों पे कब्ज़ा यूं फिजाओं पे हुक्म
अदा ये किसने सिखाई पता तो चले
कँवल खिलने लगे अब्र जलने लगे
किसने ले ली अंगडाई पता तो चले
ये किसने छुआ है, ये किसका नशा है
ये कली क्यों बलखाई पता तो चले
चाँद खिलने लगा गुल महक से गये
मेहँदी किसने रचाई पता तो चले
खोलकर आज गेसू वो मुस्कुरा गये
मौत किसपे है आई पता तो चले
गनीमत यही उन्हें मुहब्बत तो हुई
कुछ उन्हें भी तन्हाई पता तो चले
-पुष्यमित्र उपाध्याय
अच्छा लिखते हो अभी परिपक्वता की और जरूरत है कविता को अन्दर से आने दो
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