हर जख्म हर ठोकर से उबर तो आती हैं
तुम जानते नहीं हो मगर
लड़कियां टूट जाती हैं
लड़कियां टूट जाती हैं
किसी का हाथ थामे खुद हदों के पार जाने में
हदों के पार आकर फिर यकीं के टूट जाने में
किसी मेले में बच्चे सा अकेले छूट जाने में
ये खेले को समझने में,
वो मेले से निकलने में
वापस घर पहुंचने में
लड़कियां टूट जाती हैं
हुस्न की रौशनी से मन के अंधियारे छुपाने में
लबों की रंगतों से सांस की सिसकी दबाने में
आँख के काजलों से पीर के दरिया सुखाने में
वो इक आंसू छुपाने में
और फिर मुस्कुराने में
"सब कुछ ठीक है जी"
बस इतना बताने में
लड़कियां टूट जाती हैं
लड़कियां टूट जाती हैं
तुम जानते नहीं हो मगर
लड़कियां टूट जाती हैं
- पुष्यमित्र उपाध्याय
#puShyam
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