Thursday, March 11, 2021

लड़कियां टूट जाती हैं

हर जख्म हर ठोकर से उबर तो आती हैं

तुम जानते नहीं हो मगर 

लड़कियां टूट जाती हैं

लड़कियां टूट जाती हैं


किसी का हाथ थामे खुद हदों के पार जाने में

हदों के पार आकर फिर यकीं के टूट जाने में

किसी मेले में बच्चे सा अकेले छूट जाने में

ये खेले को समझने में, 

वो मेले से निकलने में

वापस घर पहुंचने में

लड़कियां टूट जाती हैं


हुस्न की रौशनी से मन के अंधियारे छुपाने में

लबों की रंगतों से सांस की सिसकी दबाने में

आँख के काजलों से पीर के दरिया सुखाने में

वो इक आंसू छुपाने में

और फिर मुस्कुराने में

"सब कुछ ठीक है जी"

बस इतना बताने में

लड़कियां टूट जाती हैं


लड़कियां टूट जाती हैं

तुम जानते नहीं हो मगर 

लड़कियां टूट जाती हैं


- पुष्यमित्र उपाध्याय

#puShyam