Thursday, March 11, 2021

लड़कियां टूट जाती हैं

हर जख्म हर ठोकर से उबर तो आती हैं

तुम जानते नहीं हो मगर 

लड़कियां टूट जाती हैं

लड़कियां टूट जाती हैं


किसी का हाथ थामे खुद हदों के पार जाने में

हदों के पार आकर फिर यकीं के टूट जाने में

किसी मेले में बच्चे सा अकेले छूट जाने में

ये खेले को समझने में, 

वो मेले से निकलने में

वापस घर पहुंचने में

लड़कियां टूट जाती हैं


हुस्न की रौशनी से मन के अंधियारे छुपाने में

लबों की रंगतों से सांस की सिसकी दबाने में

आँख के काजलों से पीर के दरिया सुखाने में

वो इक आंसू छुपाने में

और फिर मुस्कुराने में

"सब कुछ ठीक है जी"

बस इतना बताने में

लड़कियां टूट जाती हैं


लड़कियां टूट जाती हैं

तुम जानते नहीं हो मगर 

लड़कियां टूट जाती हैं


- पुष्यमित्र उपाध्याय

#puShyam




 



Sunday, February 14, 2021

 जिस मौसम में तुम बिछड़े थे


जब शाखें गुलों से महकीं थीं 

जब गलियां गलियां बहकीं थीं

जब देख शाम मुस्काती थी

जब राहें सुबह सजाती थी

जिस मौसम में सब मिलते थे

उस मौसम में तुम बिछड़े थे


जब पिघली बर्फ सर्दियों की

जब टूटी नींद बदरियों की

जब नदियां छम छम झूम चलीं

कर तट घाटों के चूम चलीं

जब खिलते गुंचे गुंचे थे

उस मौसम में तुम बिछड़े थे...

जिस मौसम में सब मिलते थे

उस मौसम में तुम बिछड़े थे

#puShyam


Wednesday, January 20, 2021

तेरा ख़याल, तेरी जुस्तजू, तेरी आशिकी गुज़ार दी
हमने गुज़ार दी........... हां वो ज़िन्दगी गुज़ार दी 🌿

-#puShYam 



 कविता एक खूबसरत मुखौटा है,

अपनी दुश्वारियों को कह देने का..
लोग लफ्ज़ों की खूबसूरती में
देख नहीं पाते बदसूरती हालातों की,
और बच जाते हैं हम,
नसीहतों और दिलासों की भीड़ से...
सुकून आ जाता है बस
बयां होने का...
मरहमों से आज़ाद,
जख्म के जावेदां होने का...

-#puShYam




फिर मेरी सुबह महक जानी है... फिर तुझे ख़्वाब में देखा है मैंने....

Herb

#puShyam

फरेब करते हैं अक्सर शब में रौशनी के कतरे,
पुरानी दुश्मनी से ज्यादा नई दोस्ती के खतरे...
#puShyam

 यूं ही रहो रूबरू, किसी हमसाये की तरह..🙃💕

मैं सुबह की तरह, तुम सुबह में चाय की तरह ..

#puShyam

 कागज़ ख़त्म हो गए हैं, सिर्फ किताबें बाकी हैं... किताबों में भरे हुए हैं सब पन्ने। गुंजाइश इतनी भी नहीं कि लिखा जा सके कुछ... कागज़ ख़त्म हो गए हैं सिर्फ किताबें बाकी हैं... #puShyam


Saturday, January 16, 2021

 रातों को जगती तो होगी

सूने को पढ़ती तो होगी


छुटपन के छज्जे से मुझको

छुप छुपके तकती तो होगी


क्या हूं कैसा कहां हूं अब मैं

हाल पता रखती तो होगी


कोहरे के खाली पन्नों पर

संदेसे लिखती तो होगी


मुझसे लड़कर बातों में वो

आँखों से हंसती तो होगी


रातों को जगती तो होगी

सूने को पढ़ती तो होगी...


#puShyam

Friday, January 15, 2021

किसी किस्से के हिस्से से......'ट्यूशन'

उस कमरे में दाखिल होने से पहले भी मेरे दिमाग में सिर्फ वही थी, उसका सिर्फ नाम सुना था, उसकी खूबसूरती कभी देखी तो न थी, हाँ दोस्तों की बातों में महसूस जरूर की थी! मगर आज उसे खुद देखने वाला था सो बेताबी कुछ ज्यादा ही थीI खैर जब कमरे में पहुंचा तो देखा लगभग सारे स्टूल, बेंचेस भर चुके थे, बस मास्साब की कुर्सी के पास में दो कुर्सियां ही खाली थीं। एक सादा समझदारी से सकुचाते हुए मैं मास्साब के पीछे जाकर खड़ा हो गया और किसी इशारे के इंतज़ार में रुका रहा, चूँकि ट्यूशन में लड़कियां ज्यादा थीं तो झिझक शबाब पे थी , उनकी तरफ देखा तो नहीं मगर न जाने कैसे ये महसूस हो चुका था कि वो उनमे नहीं थीI  मैं मास्साब की ओर देख रहा था जो कि फ़ोन पे थे,  कि अचानक पीछे से किसी ने कहा "यहीं पे बैठ जाओ ", आवाज़ में तो कोई खूबसूरती न थी, हाँ रुबाब था जैसा सुना था ठीक वैसा ही।

ये वही थी ! और मैं हुक्म की तामील में तुरंत कुर्सी पर जड़ चुका था।

 अब सिर्फ मेरे बाजू वाली कुर्सी ही खाली थी जिस पर कोई बैठ सकता था, मैंने नज़र दौड़ाई सभी बैठ चुके थेI ज़ेहन झिझक में था मगर दिल ने बता दिया कि अब वो ही पास बैठेगी,  और हुआ भी वही I यही वो खुशनुमा डर होता है ? शायद यही ! वो ना जाने किस अदा से कुर्सी पर बैठी हो मगर यूं लगा जैसे शाख से छूट कर रात-रानी उतरी हो नर्म दूब के आगोश में, मेरा फ़िल्मी दिल हाइली एक्टिव मोड में था , मुझे अपने बाईं तरफ एक रौशनी सी महसूस हो रही थीl क्यों कि वो मुझसे थोड़ा पीछे की तरफ बैठी थी तो देखना मुश्किल था और नज़र घुमा कर देखना हिम्मत से बाहर l मगर देखना तो जरुरी था; बाकी लोगों के क्या सूरत-ओ-सवाल थे, मुझे खबर न थी, मास्साब जो बोलते जा रहे थे मैं अपनी नोटबुक में घसीटे जा रहा था, नहीं पता मैं क्या सुन रहा था.. क्या लिख रहा था..?...बस वो रौशनी ..वो रौशनी ही मेरे तवज्जो की दरकार थी ..l वही महसूस होती थी.. I वो काले लिबास में थी इतना अंदाजा चल चुका था..... l मैं अपनी मामूली सी शक्ल को उस तरह ठीक करने में लग गया बस उसे नापसंदगी न हो I 

  इसे कहने में भला क्या परहेज़ करूं कि निहायत ही शरीफ हुआ करता था तब मैं, और उस वक्त सिर्फ नज़र को नहीं पूरी गर्दन को ही 120 डिग्री पे घुमाना थाl झिझक थी पर देर ना की, पहले बाकियों को देखा ,सब मास्साब को देख रहे थे, सांस रोकी मुड़ा और नज़र उसके जानिब कर दी.. मगर देखते ही नई मुसीबत!....पहली बार किसी को यूं देखा पहली बार में ही पकड़ा गया! जो भी हो मगर मैंने जो देखा उससे ज्यादा सुंदर कभी कुछ न देखा था, सचमुच किसी ख्वाब के जैसी...कोई इतना भी खूबसूरत हो सकता है? और मैं नज़र हटा न सका, मैंने ये महसूस किया कि  किसी खूबसूरत रुख को देख कर भी रोंगटे खड़े होते हैं, इस दरम्यान ना जाने कितने पल बीते होंगे...मगर जो भी थे..जिंदगी की सबसे हसीं दौलत हुए...नज़र उस चेहरे के पार कब किसी समंदर सी आँखों में उतर गईं ..पता ही न चला , किसी की आँखों से यूं आँखें मिलाकर  कभी न देखा था ,  मैं न जानता था जिस स्याह समंदर में बढ़ता जा रहा हूँ उसके किनारे ताजिंदगी न पा सकूंगा... 

इससे पहले कभी उसे न देखा था, शायद कभी बचपन में देखा हो, इससे पहले कभी इश्क न  हुआ था...शायद कभी बचपन में हुआ हो....

किसी किस्से के हिस्से से...... ©

#puShyam

किसी किस्से के हिस्से से...........'इज़हार'

 चाय का पहला सिप लेकर अखबार अभी रखा ही था कि अचानक यूं लगा जैसे वो मेरे पीछे से गुज़री है ! छत की बॉउंड्री वॉल से पलट कर देखा तो एक लड़की गली के मुहाने की ओर जाती हुई नज़र आई l ये तय नहीं था कि वो वही है या नहीं, मगर मैं चाय का कप किनारे रख दौड़ पड़ा l कभी किसी से मुहब्बत की हो तो ये जाना होगा कि कोई कितना महसूस किया जा सकता है l जितनी देर में मैं गली में पहुंचा वो मुहाने तक पहुँच चुकी थी, इधर मेरी दौड़ भी जारी थी, जिसकी एक नज़र के लिए मैंने कितने ही जद्दोजेहद किये वो आज खुद मेरी गली से गुज़री थी, मगर क्यों ? सवाल मन में थे और जूनून कदमों में ! एक वक़्त वो भी था , जब उसके सामने जाने से पहले मेरे कपड़े सलीके से जड़े हुए और बाल तमीज़ से कढ़े हुए होते थे l मगर मैं बस दौड़ रहा था.. बिखरे बालों से, अलसाए कपड़ों में ; जैसे इस पल में ये सबसे जरूरी हो l दौड़ते हुए ही उसे नाम लेकर पुकारा! अजीब सी बेताबी थी l उसे भी शायद पहचान थी मेरी आवाज़ की.. अनजानों के तो लिए वो कभी न रूकती थी मगर उस वक्त जैसे वहीं जम गई हो ;

कहा-'सुनो'

उसने मुड़ कर देखा , हाँ वही थी! स्कूल खत्म हुए दो साल हो गए थे, और उससे मुहब्बत हुए पूरे साढ़े चार.. अब तक न कह पाया था कि प्यार करता हूँ , शायद वही कहने को दौड़ा था! कई बार तो कोशिश की थी कभी लिखकर , कभी दोस्तों को जरिया बना कर l कई बार ज्ञानियों से भी सीखा था इज़हार करने का तरीका; मगर उसके सामने आते ही सब उड़ जाता था l आज कोई तैयारी न थी बस कह देना था ! इंजीनियरिंग की पढ़ाई इतना तो बेफिक्र बना ही देती है, सो पूरे हौसले से बोला-

"मुझसे तुमसे कुछ बात करनी है"

ये बात मेरी जुबान से पहले निकल गई थी, उससे नज़रें बाद में मिलीं और उसके बाद जैसे जुबान में कोई लब्ज़ ही न रहा हो...

मगर उसने तपाक से बोला " हाँ कहो"  -गज़ब का कॉन्फिडेंस था उसके कहने में l

इंटेलीजेंट , अम्बिशियस और कमाल की खूबसूरत तो वो पहले से थी , ऊपर से उसकी कॉंफिडेंट स्माइल मानो उस वक़्त कहर ही थी l वो जब सामने होती थी तो यूं लगता था जैसे आसपास सब कुछ धुंधला सा है, शायद ये सभी देवदासों ने महसूस किया होगा l सिर्फ वही साफ़ नज़र आती थी एक पुरनूर उजाले से निकली हुई ! जैसे टीवी में फ़रिश्ते दिखाये जाते हैं ..!

गला सूख चुका था, कॉन्फिडेंस का जो माइनस लेवल होता है वो अब मैं महसूस कर रहा था...! 

लड़खड़ाते हुए बोला: " वो ..मैं..ये कह रहा था कि..कुछ नहीं ...वो तुम्हारी सर से बात हुई? वो कह रहे थे कि सारे ओल्ड स्टूडेंट्स से कांटेक्ट करो रीयूनियन करते हैं..!"

मैंने उसकी तरफ देखा - जैसे जमींदोज सितारों को देखते हैं...और उसकी नज़र यूं कि जैसे महल बेचारों को देखते हैं...!

"देखते हैं " वो अपने ही अंदाज़ में बोली

"ठीक है " कहकर मैं चुप हो गया..!

"हम्म ठीक है ".. हम दोनों ने फिर एक बार कहा ...

इस बार भी न कह पाया था , यही सोच कर वापस मुड़ने लगा कि अचानक उसने कहा - "बस ?"  ..."बस यही कहना था " ? 

मैंने पलट कर देखा - उसकी आँखों में एक ठहराव था l कई सवाल थे, आसपास से वो धुंधलापन छंटने लगा था... मुझे महसूस हुआ कि उसकी धड़कन बढ़ रही है, वो कॉन्फिडेंस गायब है.. उसकी खामोश निगाहों में कोई उम्मीद सी थी शायद..!

मुझे वो बेहद मासूम सी दिखी..उसकी यही अदा थी.. सच्ची अदा...! जिसे हमेशा वो अपने सख्त लहजे में छिपाए रखती थी l कोई हो तो उसके जैसा हो... 

मुझमें जो एक जूनून घर से दौड़ते वक़्त था, वो अब होश में बदल चुका था ..! 

जुबान से अनायास ही कह गया - " हाँ यही"

हम दोनों के बीच उन पलों में जो तूफ़ान शबाब पे था वो जैसे थम गया था..लहरें चट्टान को छूकर लौट गईं थीं l

वो मुस्कुराई, खुद को सम्भालते हुए बोली - " तुम हमेशा पागल ही रहोगे.... चलो चलती हूँ फिर "... !

इस पागलपन को कितने ही साल हो चुके थे, बहुत वक़्त होता है ये ! फिर भी न कह सका था उससे , कह देता तो शायद वो अपना लेती या ठुकरा देती, मगर ये वाला इश्क़ खत्म हो जाता जिसके लिए ग़ालिब कहता है -

" कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ए-नीम कश को 

ये खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता "

मैंने वो खलिश बचा ली थी, जिसे मैं साढ़े चार साल से सम्भाले हुए था, खुदगर्जी थी मगर हाँ....प्यार है या नहीं इस खुमार में जीना ही ज्यादा सेफ था l मैं ये खुमार , ये उलझन , उसका मेरी इक पुकार पे रुक जाना, उसकी आँखों की वो कशिश, ये सारी खुशफहमियां खोना नहीं चाहता था सो फिर कभी...

मैं घर की ओर मुड़ आया , इज़हार हो गया था... जवाब बुन लिए थे!

किसी किस्से के हिस्से से...............©

#puShyam

किसी किस्से के हिस्से से..........'शार्पनर'

अभी एक बजकर पांच मिनट हुए थे, सामने से रचित आता दिखा, वही गुनगुनाते हुए अपनी ही मस्ती में; वर्कशॉप थी मैकेनिकल की; मैं पांच मिनट पहले ही आ चुका था ....शायद उससे भी ज्यादा पहले! किसी के इंतज़ार में नहीं बस उसके सामने वाली सीट पर अपना कब्जा जमाने को..

"और प्रा आज लेक्चर में तो नहीं था तू? लैब में कैसे दर्शन दे दिए?" मजाकिया लहजे में रचित बोला..

उसके पूछने में पूछने से ज्यादा बताना घुला हुआ था, मेरा सारा हाल उससे ज्यादा सिर्फ मुझे पता था!

 विराजो प्रभो! मैंने रचित को कहा; 

हम्म ये लड़की तुझे बर्बाद कर देगी..बैठते हुए रचित ने तंज किया!

 मैं हंस दिया, खैर मैं तो बर्बाद होने आया हूँ पर तू बता तू कैसे सबसे पहले आ गया ? 

अरे सब इधर-उधर टहलते हैं , हम सीधे चले आये मुस्कुराते हुए रचित सामने वाली सीट पर जम चुका था! 

"हाँ ठीक है बस इस सीट से उठ जा" मैंने खिसियाते हुए कहा

"ना उठ रहा बोल?" रचित बोला 

मैं कुछ कह पाता इतने में वो लैब में आ चुकी थी.. और मैं उलझनों से ओझल उसकी उजास में खो चुका था, रचित पीछे मुड़ा तो न था.. बस मेरी आँखों की चमक को देखते ही समझ गया था और अपने आप मेरे पीछे वाली सीट पर आकर बैठ गया..!

वो नजदीक आती जा रही थी..उसके पीछे पूरा बैच..खाली पड़ी लैब में भीड़ हो गयी थी ! और इधर मेरे मन में जैसे किसी कठोर तपस्या का सुफल बरस रहा था....

खैर उसका आना हुआ ...फिर वही मुस्कुराना जिसने न जाने कितनी ही खाबों को मेरे जेहन में संवारा था....

और फिर बैग रखना फिर अपनी तयशुदा सीट पर बैठना.... किसी रानी जैसे ठाठ थे उसके भी, और मैं अपनी आवारगी को सलीके के रंग-रोगन से छिपाता नकारता उसके सामने होता था! खुद को झुठलाना चाहता था मैं उसके लिए, शायद किसी बेहद हसीन खाब की तवज्जो में ऐसा किया जाता होगा; 

मैं जिस सीट पे बैठा था उसके पास ही एक खिड़की थी जिसके पार सरसों लहलहा रही थी...., लैब में सर आ चुके थे और कुछ समझाने में लगे थे, सब अपने अपने कामों में मशगूल थे... बस्स..  मैं ही नहीं था... कहीं भी नहीं, न लैब में न खिड़की के उस पार!

 एक  जुल्फ थी जो उसके चेहरे पे उतरना चाहती थी,  उसे रोक रखा था उसने कान के ऊपर से; मगर वो जुल्फ थी कि बस.....

जुल्फ से ध्यान तब टूटा जब मेरे बाजू बैठे लड़के से उसने शार्पनर माँगा, फिर दूसरे से फिर बाकियों से .....और आखिर में मेरी तरफ देखते हुए बरौनियों को ऊपर कर पूछ लिया.... बिना कुछ कहे बस मुस्कुरा कर...!

शार्पनर तो मेरे पास भी न था मगर वो नज़र... वो मुस्कराहट....वो पुरसुकूं अहसास बाकियों से अलग होने का....बस वही अहसास जिंदगी भर की दौलत थी; इससे ज्यादा क्या चाहता? इससे ज्यादा क्या पाता?  कुछ हासिल करना सब कुछ नहीं होता...किसी अहसास में जीना...किसी गुमान में उड़ना.....उस लम्हे के लिए यही सब कुछ था....हवाएं सरसों की महक में लिपटी हुई खिड़की को पार कर आयीं थीं... मेरे बाल भी बिखर गए थे सलीकों की जिद तोड़ कर.....

किसी किस्से के हिस्से से..........©


#puShyam

किसी किस्से के हिस्से से........'एटीएम'

 अभी मुड़ा ही था एटीएम से कैश निकाल कर, कि सामने बस से उतरती हुई दिखाई दी वो l  हालांकि लेक्चर अटेंड करने की जल्दी थी मुझे, मगर उसे देखने को बेबस ही ठहर गया था मैं l और वो कि अपनी ही शाही नज़ाकत से सड़क पार करती हुई चली आ रही थी, उसे देखना हुआ और मेरा थम जाना ! कई - कई बार तो देखा था उसे , मगर हर बार नई सी रौशनी होती थी उसके दीदार में l मद्धम हवाओं में उलझी खिलती सी वो अभी सड़क के इस पार आ ही पायी थी, कि बारिश शुरू हो गई;  बारिश भी इतनी तेज़ कि जैसे उसे तंग करने के लिए ही दौड़ आई हो फलक से l सो उसकी दौड़ती छमक कॉलेज की बजाय उस एटीएम की तरफ मुड़ आयी जहाँ मैं बुत बने खड़ा था l इत्तेफाक था कि बारिश हुई! मगर सच यहां बारिश ही होनी थी..बस बारिश !  भगवान भी कभी-कभी दुआ मांगने से पहले पूरी कर देता है, आज यकीन हो गया था l और बारिश भी रह रह के तेज़ होने लगी थी l

  हम दोनों अब एटीएम के बाहर बनी टीन शेड में बारिश रुकने का इंतज़ार करने लगे l हालांकि हम दोनों नहीं, सिर्फ वो.....शायद ! मेरी कभी बात तो नहीं हुई थी उससे, मगर पहचान अच्छी-खासी थी l वही पहचान जो कभी कैंपस में तो कभी कैंटीन में और कभी-कभी निगाहों में हो जाती है l बस इंतज़ार था कि कभी अपनी बात होगी ; ये इंतज़ार बड़ा लम्बा होता है कभी-कभी बरसों का l खैर सुर्ख हरियाली से लबालब पेड़ों के शज़र झूम रहे थे, पानियों की सरगमें गूँज रहीं थीं और वो अपने खुले हुए बालों को स्कार्फ़ से सुखाने की कोशिश कर रही थी l मैं बस चुपचाप देख रहा था कुदरत के सिंगार को जवां होते हुए .. l बारिश की बूँदें कुछ यूं उसके रुख से गुजरतीं थीं जैसे ओस के कतरे फिसलते जाते हैं कँवल की पंखुड़ियों पे ! बारिश में कभी चाँद अगर निकला हो तो ऐसा हुआ होगा l

    बस खामोश सा देखे जा रहा था उसे l मिले भी तो हम यूं थे कि जैसे समंदर की लहरों ने लाकर फेंक दिया हो दो सीपों को किसी वीराँ साहिल पे; नहीं पता कि बारिश कब रुकेगी, कि कब समंदर से कोई लहर आए और खींच ले जाये हमें अपने भंवर में, फिर कभी ये वक़्त , ये अहसास मिल सकेगा या नहीं ? ना जाने कौन से किनारे नसीब होंगे हमें l इस भंवर में खोये तो फिर मिलेंगे भी या नहीं ? मैं उस चट्टान पे ठहरे उन सीपों में खोया हुआ , न जाने कब से उसकी तरफ देखे जा रहा था कि अचानक उसने खामोशी तोड़ी- "ये कब बंद होगी ?"

होश सम्भालते ,बिना सोचे मैंने भी तपाक से बोल दिया " न ना इन फिफ्टी सेवेन" 

उसने कहा "क्या " ?

मैंने फिर दोहराया " नौ सत्तावन पे "

"आ हाँ तुम्हें जैसे बिलकुल फिक्स टाइम पता होगा ना? " स्कार्फ़ को बैग में रखते हुए उसने ताना मारा 

"हाँ तुमने पूछा ही इतनी उम्मीद से था, तो मुझे भी कॉन्फिडेंस हो लिया बताने का "

कह कर मैं मुस्कुरा दिया और बदले में वो भी हंस पड़ी! हमारी हसतीं निगाहें ठहरी हुई थीं, यूं तो निगाहों का मिलना पहली बार ना था, मगर हाँ कुछ पहली बार सा ही था !

"सीरियसली यार लेक्चर मिस हो गया मेरा " निगाह बारिश की तरफ करते हुए कहा उसने

"हाँ तो अच्छा ही हुआ ना" कहकर मैं भी बारिश की तरफ देखने लगा 

" अच्छा जी " अपनी हँसी को होठों से दबाते हुए वो मुस्कुरा दी l दूर तक मंजर बरस रहा था... हम दोनों के बीच अब बस बारिशों की छनक थी,  जमी हुई खामोशियों को बड़ी सादगी से तोड़ दिया था उसने l

किसी किस्से के हिस्से से........©

#puShyam

किसी किस्से के हिस्से से.........'प्रेपरेशन लीव'

दरवाज़े पे एक आवाज़ के साथ नींद खुली! शायद किराएदार के बच्चे क्रिकेट खेल रहे होंगे। एकदम से कुछ याद आया, हड़बड़ा कर घड़ी में देखा तो सवा आठ से ज्यादा हो चुके थे। "वो बस स्टॉप पे आ चुकी होगी.." जाने क्या बड़बड़ाते हुए बिस्तर से उठा और सीधे वॉशबेसिन पे मुंह धोने पहुँच गया। पानी ज्यादा ठंडा होगा शायद मगर महसूस नहीं हुआ। आठ चालीस पे बस आती थी और वो आठ बीस पे। ये वो वक़्त था जब हम खूब बातें करते, हँसते- हंसाते। इतनी देर में मैं कपड़े पहन चुका था, बाल रूखे हो रहे थे.. ठीक करता तो देर हो जाती। सो विंटर कैप चढ़ा ली। दरवाज़े की तरफ बढ़ा मगर कुछ बाकी था शायद, हाँ ब्रश तो किया ही नहीं..? जल्दी-जल्दी वो भी निपटाया। आज से मेरी प्रिपरेशन लीव शुरू हो चुकी थीं और उसकी चार दिन बाद होने वाली थीं। बीस दिन की प्रिपरेशन लीव और महीने भर के एग्जाम्स। न जाने कितने दिन बाद बस स्टॉप वाली बातें हो पाती...फिर हम दोनों के एग्जाम्स भी तो अलग-अलग मीटिंग्स में होने थे; तो कदम अपने आप तेज हो गए थे। दौड़ते हुए सीढ़ियां उतरा, और फिर दरवाज़ा खोलते हुए रास्ते में आ चुका था। वाह! क्या गज़ब का दिन था। शायद बारिश हुई थी सुबह... ऊपर से मेरी कॉलोनी के लहलहाते पेड़.. किसी मुलाक़ात को ख़्वाब जैसा बनाने के लिए आइडियल सीन था...। भीगी हुई सड़कें, ठंडी ठंडी हवाएं, सड़क किनारे महकते हुए बेले के फूल.. और ख्यालों में उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा.. जिंदगी तो इन्हीं में थीl रास्ते में हेमंत का घर था, पार्क की दीवार से देखा तो किसी काम में मशगूल था; सोचा लौटते हुए बतिया लूँगा, अभी तो कुछ और ही जरूरी था।  मैं लगभग दौड़ता सा बढ़ा.. गली के मुहाने पर आते ही चाल मद्धम की और खुद को बेखबर सा करते हुए चलने लगा। गली खत्म होते ही गोल चक्कर के पार हम लोगों का बस स्टॉप था, जहां हमारी बातों की खुशबुएं महका करती थीं.. जैसे-जैसे आगे बढ़ा वो समां करीब आने लगा, पहले गोल चक़्कर दिखा और उसके पार वो... सांस में सुकून आया। बस अभी नहीं आई थी।  दूर से देखा और दोनों को हंसी आ गई, आँखों पे पढ़ाकू चश्मा लगाए वो लड़की जैसे जानती थी कि मैं आने ही वाला हूँ। इधर उधर देखते हुए मुस्कुराते हुए मैं आगे बढ़ता रहा, वो भी जिस जगह बुत बनी हुई थी, वहां से आगे की तरफ चहल कदम करने लगी..। मैं सड़क पार करते वक़्त यही सोच रहा था कि आखिर कहूंगा क्या? क्यों आया हूँ..? मेरी ब्रांच की क्लासेज खत्म हो चुकी हैं, ये बात तो उसे पता ही थी।....अब मैं उसके पास पहुँच चुका था, कि एक दम से वो हंस दी! यही तो वो क़यामत थी.. कि जैसे सफेद परिंदे उड़ते हैं एक दम से....जादू था उसके उस अदा से मुस्कुराने में, यही जादू तो नींदों से यहां खींच लाया था। वो कुछ पूछती इससे पहले ही मैंने पूछ लिया " हेमंत आया क्या? " वो मुस्कुरा दी ..बोली- "अच्छा हेमंत को ढूंढ रहे हो".. मुझे विश कौन करेगा? वो शिकायत करते वक़्त भी मुस्कुराती थी... मैं चुप हुए उसकी तरफ देखने लगा...जुबान से जाने कब निकल गया "हैप्पी न्यू ईयर यार"... उसने भी नज़र घुमाते हुए थैंक्यू छोड़ दिया.. हम दोनों जाने किस बात पे हंस रहे थे... नज़रें हटाईं. . मैं इधर उधर देखने लगा। हवाएं हम दोनों को समेटती हुई गुज़र रहीं थी.. "सो कर आ रहे हो शायद?.. विश करने के लिए भी मैं ही बोलूं?.. तुमसे कुछ नहीं बोला जाता न?"  वो बोली। और मैं इन मासूम मगर कातिलाना सवालों से लड़खड़ा सा गया..बोला- "नहीं मैं वो.. उससे नोट्स लेने थे तो मुझे लगा कॉलेज न निकल जाए.. कल देर रात तक खूब हल्ला मचाया है न ...तो अभी उठ पाया हूँ सो....के..."। जाने क्या बोले जा रहा था मैं?

   वैसे मौसम आज बेहतरीन है न..?. मैंने उसकी तरफ देखा.. उसने चश्मा उतारा हुआ था और हवा से उसके घुंघराले बाल चेहरे पे आ रहे थे...एक नज़र देखता रहा..कोई ग़ज़ल सी लिखी जा रही थी कहीं.... "अरे वाह अच्छी लग रही है"... मैं बोल पड़ा..!  "पता है मुझे" -वो मुस्कुराई...." अरे यार बस आ गई.."। इस बार एक मलाल सा था उसके लहज़े में.. मगर ये लहज़ा सुकून दे रहा था.. मैंने मुड़ के देखा...बस सामने आ चुकी थी। उसने बाल समेटे बांधे और बस में बैठ गई....मैं खिड़की के पास ही खड़ा था..उसने खिड़की से देखा..मुस्कुराई और बोली .. " तुम्हें शायद पता न हो..कि हेमंत भी तुम्हारी ही क्लास में है और उसकी भी प्रेपरेशन लीव स्टार्ट हो चुकी हैंl"  इस बार बस मुस्कुराना ही जवाब था.. ये जो पकड़ा जाना होता है न ? इसका भी एक अलग सुख होता है...मैं वो सुख चश्मे के पार उसकी चमकती आँखों में देख रहा था... उसने बरौनियों को ऊपर करते हुए सर हिलाया जैसे कह रही हो ."सब पता है मुझे " बस चल चुकी थी..! कुछ दूरी के बाद उसने फिर से मुड़ कर देखा मैं वहीँ खड़ा था...उसका चेहरा दूरियों में धुंधलाता जा रहा था...और धीरे धीरे बस भी शहर के ट्रैफिक में ओझल हो चुकी थी.....

किसी किस्से के हिस्से से........... ©

#pushYam

किसी किस्से के हिस्से से......'मोड़'

"पंडित जी हमें पता है हम काले हैं, मगर हमारा दिल एक दम गोल्डन है......" चाभी में बंधी एक लम्बी डोरी को गोल-गोल घुमाते हुए, अंकित अपनी बिछड़ी मुहब्बत की दास्ताँ सुनाने में डूबा हुआ था। शाम हो चुकी थी, कोचिंग से लौटते वक़्त हम लोग रोज़ाना की तरह कोने वाले गुप्ता जी की स्टफ्ड पैटीज़ खाकर, घर की तरफ बढ़ रहे थे।

"हम्म.. सही कह रहे हो अंकित जी" मैं किसी और उधेड़बुन में आधी कहानी सुनता-समझता साथ-साथ चले जा रहा था। इसी दरम्यान पीछे से आती हुई एक स्कूटी हमारे पास से गुज़रती है और अगले ही मोड़ पर टर्न लेकर रुक जाती है। 

"पंडित जी हमारे पास भी स्कूटी होती तो मज़ा ही आ जाता" अंकित देखते ही बोला। इस स्कूटी को पहचानता था मैं, और मोड़ भी पास था तो यकीन आने में देर न लगी।

"अरे ये तो वही है!" मैं खुद ही बोल पड़ा।  

"कौन वही?" अंकित ने उत्सुकता में पूछा

"जहाँ मेरा रूम है उसी मोहल्ले में रहती हैं ये! बड़े दंगे कराये हैं इनकी खूबसूरती ने।"  बिना मंज़र से नज़र हटाए मैं अंकित को बता रहा था।

"वो तो ठीक है मगर यहाँ क्यों खड़ी हैं मैडम?" मैंने खुद ही सवाल किया और खुद ही जवाब दे दिया "शायद इंतज़ार कर रही होंगी किसी का"

अंकित की प्रेम कथा और मेरी उधेड़बुन एक नई जिज्ञासा पर म्यूट हो गयीं थीं। अब हम एकदम करीब आ चुके थे; उसने अपना चश्मा नहीं उतारा था, सो पता नहीं चला कि इंतज़ार किस तरफ का किया जा रहा है। हालांकि उसके बारे में ज्यादा नहीं जानता था मैं... बस बालकनी में खड़े हुए, अक्सर उसे घर के आगे से गुज़रते देखा था। उसके नाम पर होने वाले झगड़ों के बारे में सुना था मैंने। 

पहली बार था, जो इतना करीब से देख रहा था उसे। सर्दियों की धूप में बर्फ जैसे चमकते चेहरे पर होठों की सुर्खियां, एक हसीन संजीदगी को संभाले ठहरी हुईं थी। फूल-पत्तियों से कढ़े विंटर कैप से बाहर झूलती उसकी जुल्फें पीठ पर कसे बैग को आगोश में लिए बहक रहीं थी। जिसे कभी नज़र भर देखा भी नहीं था, आज उससे नजर नहीं हट रही थी....। उसके लिए होने वाले झगड़े जायज ही लग रहे थे..... इस ख्वाब के लिए तो कोई उम्र भर भी लड़ता रहे...। इन्हीं सब ख्यालों में वो मोड़ कब गुज़र गया पता ही नहीं चला, मगर जेहन में अभी भी यही सवाल था कि आखिर ये किसका इंतजार कर रही होगी?

आगे बढ़ आये थे हम, और अंकित ने अपनी रुकी हुई प्रेम-कथा शुरू की ही थी, कि अचानक पीछे से फिर स्कूटी की आवाज़ आई और हमारे दाएं से गुज़रती हुई, अगले मोड़ पर जाकर फिर ठहर गई। अंकित बोलते-बोलते रुक गया था, और मैं समझ नहीं पा रहा था कि बोलना क्या है। 

"पंडित जी तुम हमसे कुछ छुपा तो नहीं रहे?" अंकित ने चाभी को घुमाते हुए शंकित अंदाज़ में पूछा..

"अरे कुछ भी कहते हो अंकित जी! तुमसे कुछ छुपाया है...? ये हमारे लिए नहीं है, हमने तो कभी देखा भी नहीं है इसे ठीक से...." अंकित को जवाब देते-देते मेरी खुद की जिज्ञासा बढ़ने लगी थी। मन में एक खामोश सा शोर उठने लगा था।

तसल्ली करने के लिए पीछे मुड़कर बड़बड़ाते हुए देखा "कौन है भईया किसका इंतजार है।" और देखा-अनदेखा करते हुए उसके पास से होकर मोड़ को पार कर लिया। 

मोड़ तो पार हो गया, मगर इस बार देरी न हुई और स्कूटी स्टार्ट होकर एक तेज़ एक्सेलरेटर लेते हुए फिर से हमारे अगले मोड़ पर पहुँच कर रुक गयी। इस बार इंजन स्टार्ट ही रखा गया था, हम आगे बढ़ते हुए करीब पहुंचते जा रहे थे। देखा तो बर्फ की रंगत गुस्से में गुलाबी पड़ चुकी थी....... उसने आँखों से चश्मा हटा दिया था......पहली बार उसकी कंजी आँखों को देख रहा था मैं....और एक तल्ख़ नाराज़गी के सिवा कुछ नज़र नहीं आया, मगर इस बार नज़र नहीं फे......; देखता ही रहा उसकी गुस्सैल आँखों को।

"ऐसा है पंडित जी, बनाओ मत! अब हम तुम्हारे साथ नहीं आया करेंगे, तुम हमें कुछ नहीं बताते हो, हमारी सब उगलवा लेते हो!" अंकित ने मज़ाकिया होकर तंज छोड़ दिया।

"हम जा रहे हैं अब, इससे आगे के मोड़ तुम अकेले ही पार करो!"

इसी गली में अंकित का घर था, वो अपने घर की तरफ मुड़ गया और मैं ये मोड़ भी बिना रुके, बिना एक लफ्ज़ कहे पार कर आया था। अगला मोड़ थोड़ा दूरी पर था! दूर दिशाएं डूब रही थीं...क्षितिज धुंधला पड़ रहा था... एक बेखयाली में कदम बढ़ रहे थे, दिमाग में कुछ न था; न सवाल, न शंका, न कोई उधेड़बुन....।  

पिछले मोड़ पर स्कूटी स्टार्ट हो गयी थी और ज़ुल्फ़ों को लहराती हुई, दूर उस अगले मोड़ पर जाकर ठहर चुकी थी। शाम की सर्दी तल्ख़ होने लगी थी, और हवाएं मीठे से नश्तर लिए सीने में उतरने लगी थीं......

किसी किस्से के हिस्से से...... ©

#PushYam

किसी किस्से के हिस्से से....... 'कहानी'

कितना पढ़ोगी?-मैंने पूछा। वो कंधे पर बैग लिए मुस्कुराती चली आ रही थी , हालांकि लेक्चर्स की थकान उसके चेहरे पर थी। 

"बस थोड़ा सा और" -आते ही बोली और उस छोटे से पेड़ के सहारे बैठ गई, पानी पिया फिर मेरी तरफ देखते हुए बोली -"तुम्हारी क्लास नहीं हुई? "

"नहीं! आज मास बंक था" 

"फिर क्या हुआ किस सोच में हो? " - बालों को ठीक करते हुए उसने कहा 

"कुछ नहीं यार मेरी कहानी खो गई है"

"कौन सी कहानी?" उसने हैरानी सी पूछा

"पता नहीं "- कहते हुए मैं उसके करीब ही बैठ गया

"ओह तो क्या हुआ हमारी कहानी लिखो"

"हमारी कहानी? हमारी कहानी तो न शुरू हुई है न खत्म, न पूरी तरह जान पाया हूँ न समझा हूँ"- मैंने सवालों से उसकी तरफ देखा।

उसने बड़ी संजीदगी से मेरी तरफ देखा और बोली कि- " हर कहानी के दो हिस्से होते हैं, एक को तुम जी रहे हो - एक को मैं ! जिस हिस्से को तुम जी रहे हो उसको तो तुमने समझा ही होगा, और उसका कोई अंजाम भी सोचा होगा, वही लिखो..वही तो नई कहानी है"

"हाँ मगर मेरे हिस्से की कहानी में तो तुम हो" मैंने उसकी चमकती आँखों में देखते हुए कहा - " तुम्हें लिखा तो लिखना पड़ेगा इन गज़ाल सी आँखों का अंदाज़...! तराशनी होगी बेबाक अदाओं की सूरत....! करना पड़ेगा जिक्र इन लबों की सुर्ख़ियों का...! बिठाना पड़ेगा कागज़ पे तुम्हारी आवाज़ के सुरों को...! बयां करना होगा तुम्हारे पुरनूर चेहरे की रौशनी को...! 

और फिर किसी पढ़ने वाले ने इन सब दस्तावेजों से खोज ली तस्वीर तुम्हारी और बसा लिया दिल में तो ? मेरे हिस्से में तो तुम ही हो..सिर्फ तुम.. तुम्हें ही तो जाना है.. समझा है l मैं इसे तो शेयर नहीं करने वाला !

अपने इतने लम्बे डॉयलॉग से जब मैं आज़ाद हुआ तो पाया कि उसकी नज़र मुझ पर ठहरी हुई है, एक अजब सी शिद्द्त उसकी आँखों में उतरी हुई थीl मैं उसकी तरफ देखते हुए ही बोला जा रहा था मगर ये नज़र मुझे अभी महसूस हुई, इस मुहब्बत की नज़र के लिए तो कोई उम्र भर बोलता रहे...उम्र भर गाता रहे.....

वो बिना पलक झपकाए बोली - "अच्छा ?" 

उस पेड़ से पीले कनेर के कुछ फूल आस पास गिर गए थे, एक ठंडी सी खामोशी हम दोनों के बीच थी....वो न जाने मेरे चेहरे पे क्या पढ़ रही थी, और मैं जैसे सारे जवाब देकर बेफिक्र हुआ था...!

खैर नज़र टूटी मगर वो हसीं खामोशी अब तक जवां थी...

"तुम्हारे दोस्त आ गए " - उसने खामोशी को तोड़ते हुए कहा

मैंने मुड़ के देखा तो वे कुछ ही दूरी पर थेl

"चलो अब मैं तो चली मेरे हिस्से की कहानी को छोड़ कर"- वो उठते हुए बोली और चल दी

 कुछ कदम बाद चलते हुए ही मुड़कर मुस्कुराई; और बोली - " मुझे भी अपने हिस्से की कहानी शेयर करना बिलकुल अच्छा नहीं लगता "

कुछ ही पलों में वो काफी दूर जा चुकी थी ...

दोस्त करीब आ गए थे.. उनके मज़ाकिया तंज घुलने लगे थे कानों में.....मगर दिल में अब तक पीले कनेर बरस रहे थे....

किसी किस्से के हिस्से से....... ©


#puShyam

मैं किसी का पहला प्यार

 ये पाकीज़गी रहने दे

ये संजीदगी रहने दे

ना रिझा ऐ गुल मुझे

ना दिखा कोई बहार

मैं किसी का पहला प्यार

मैं किसी का पहला प्यार


मैं किसी की पहली मन्नत

पहली गलती, पहली ज़ुर्रत

किसी की पहली जीत हूँ मैं

किसी के दिल की पहली हार

मैं किसी का पहला प्यार

मैं किसी का पहला प्यार



मैं किसी का बहता काजल

मैं किसी धड़कन की हलचल

मैं कभी पल पल दुआ मेँ

मैं हूँ बरसों इँतज़ार

मैं किसी का पहला प्यार

मैं किसी का पहला प्यार



मैं कभी अर्गों की अर्जी

मैं कभी व्रत की मुराद

मैं ही आगाजों से पहले 

मैं ही अंजामों के बाद 

तोड ना मुझको तू ऐसे

मैं किसी का ऐतबार

मैं किसी का पहला प्यार

मैं किसी का पहला प्यार


-पुष्यमित्र

#puShyam

Thursday, January 14, 2021

 फरेब करते हैं अक्सर शब में रौशनी के कतरे,

पुरानी दुश्मनी से ज्यादा नई दोस्ती के खतरे...

#puShyam