Friday, January 15, 2021

किसी किस्से के हिस्से से.........'प्रेपरेशन लीव'

दरवाज़े पे एक आवाज़ के साथ नींद खुली! शायद किराएदार के बच्चे क्रिकेट खेल रहे होंगे। एकदम से कुछ याद आया, हड़बड़ा कर घड़ी में देखा तो सवा आठ से ज्यादा हो चुके थे। "वो बस स्टॉप पे आ चुकी होगी.." जाने क्या बड़बड़ाते हुए बिस्तर से उठा और सीधे वॉशबेसिन पे मुंह धोने पहुँच गया। पानी ज्यादा ठंडा होगा शायद मगर महसूस नहीं हुआ। आठ चालीस पे बस आती थी और वो आठ बीस पे। ये वो वक़्त था जब हम खूब बातें करते, हँसते- हंसाते। इतनी देर में मैं कपड़े पहन चुका था, बाल रूखे हो रहे थे.. ठीक करता तो देर हो जाती। सो विंटर कैप चढ़ा ली। दरवाज़े की तरफ बढ़ा मगर कुछ बाकी था शायद, हाँ ब्रश तो किया ही नहीं..? जल्दी-जल्दी वो भी निपटाया। आज से मेरी प्रिपरेशन लीव शुरू हो चुकी थीं और उसकी चार दिन बाद होने वाली थीं। बीस दिन की प्रिपरेशन लीव और महीने भर के एग्जाम्स। न जाने कितने दिन बाद बस स्टॉप वाली बातें हो पाती...फिर हम दोनों के एग्जाम्स भी तो अलग-अलग मीटिंग्स में होने थे; तो कदम अपने आप तेज हो गए थे। दौड़ते हुए सीढ़ियां उतरा, और फिर दरवाज़ा खोलते हुए रास्ते में आ चुका था। वाह! क्या गज़ब का दिन था। शायद बारिश हुई थी सुबह... ऊपर से मेरी कॉलोनी के लहलहाते पेड़.. किसी मुलाक़ात को ख़्वाब जैसा बनाने के लिए आइडियल सीन था...। भीगी हुई सड़कें, ठंडी ठंडी हवाएं, सड़क किनारे महकते हुए बेले के फूल.. और ख्यालों में उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा.. जिंदगी तो इन्हीं में थीl रास्ते में हेमंत का घर था, पार्क की दीवार से देखा तो किसी काम में मशगूल था; सोचा लौटते हुए बतिया लूँगा, अभी तो कुछ और ही जरूरी था।  मैं लगभग दौड़ता सा बढ़ा.. गली के मुहाने पर आते ही चाल मद्धम की और खुद को बेखबर सा करते हुए चलने लगा। गली खत्म होते ही गोल चक्कर के पार हम लोगों का बस स्टॉप था, जहां हमारी बातों की खुशबुएं महका करती थीं.. जैसे-जैसे आगे बढ़ा वो समां करीब आने लगा, पहले गोल चक़्कर दिखा और उसके पार वो... सांस में सुकून आया। बस अभी नहीं आई थी।  दूर से देखा और दोनों को हंसी आ गई, आँखों पे पढ़ाकू चश्मा लगाए वो लड़की जैसे जानती थी कि मैं आने ही वाला हूँ। इधर उधर देखते हुए मुस्कुराते हुए मैं आगे बढ़ता रहा, वो भी जिस जगह बुत बनी हुई थी, वहां से आगे की तरफ चहल कदम करने लगी..। मैं सड़क पार करते वक़्त यही सोच रहा था कि आखिर कहूंगा क्या? क्यों आया हूँ..? मेरी ब्रांच की क्लासेज खत्म हो चुकी हैं, ये बात तो उसे पता ही थी।....अब मैं उसके पास पहुँच चुका था, कि एक दम से वो हंस दी! यही तो वो क़यामत थी.. कि जैसे सफेद परिंदे उड़ते हैं एक दम से....जादू था उसके उस अदा से मुस्कुराने में, यही जादू तो नींदों से यहां खींच लाया था। वो कुछ पूछती इससे पहले ही मैंने पूछ लिया " हेमंत आया क्या? " वो मुस्कुरा दी ..बोली- "अच्छा हेमंत को ढूंढ रहे हो".. मुझे विश कौन करेगा? वो शिकायत करते वक़्त भी मुस्कुराती थी... मैं चुप हुए उसकी तरफ देखने लगा...जुबान से जाने कब निकल गया "हैप्पी न्यू ईयर यार"... उसने भी नज़र घुमाते हुए थैंक्यू छोड़ दिया.. हम दोनों जाने किस बात पे हंस रहे थे... नज़रें हटाईं. . मैं इधर उधर देखने लगा। हवाएं हम दोनों को समेटती हुई गुज़र रहीं थी.. "सो कर आ रहे हो शायद?.. विश करने के लिए भी मैं ही बोलूं?.. तुमसे कुछ नहीं बोला जाता न?"  वो बोली। और मैं इन मासूम मगर कातिलाना सवालों से लड़खड़ा सा गया..बोला- "नहीं मैं वो.. उससे नोट्स लेने थे तो मुझे लगा कॉलेज न निकल जाए.. कल देर रात तक खूब हल्ला मचाया है न ...तो अभी उठ पाया हूँ सो....के..."। जाने क्या बोले जा रहा था मैं?

   वैसे मौसम आज बेहतरीन है न..?. मैंने उसकी तरफ देखा.. उसने चश्मा उतारा हुआ था और हवा से उसके घुंघराले बाल चेहरे पे आ रहे थे...एक नज़र देखता रहा..कोई ग़ज़ल सी लिखी जा रही थी कहीं.... "अरे वाह अच्छी लग रही है"... मैं बोल पड़ा..!  "पता है मुझे" -वो मुस्कुराई...." अरे यार बस आ गई.."। इस बार एक मलाल सा था उसके लहज़े में.. मगर ये लहज़ा सुकून दे रहा था.. मैंने मुड़ के देखा...बस सामने आ चुकी थी। उसने बाल समेटे बांधे और बस में बैठ गई....मैं खिड़की के पास ही खड़ा था..उसने खिड़की से देखा..मुस्कुराई और बोली .. " तुम्हें शायद पता न हो..कि हेमंत भी तुम्हारी ही क्लास में है और उसकी भी प्रेपरेशन लीव स्टार्ट हो चुकी हैंl"  इस बार बस मुस्कुराना ही जवाब था.. ये जो पकड़ा जाना होता है न ? इसका भी एक अलग सुख होता है...मैं वो सुख चश्मे के पार उसकी चमकती आँखों में देख रहा था... उसने बरौनियों को ऊपर करते हुए सर हिलाया जैसे कह रही हो ."सब पता है मुझे " बस चल चुकी थी..! कुछ दूरी के बाद उसने फिर से मुड़ कर देखा मैं वहीँ खड़ा था...उसका चेहरा दूरियों में धुंधलाता जा रहा था...और धीरे धीरे बस भी शहर के ट्रैफिक में ओझल हो चुकी थी.....

किसी किस्से के हिस्से से........... ©

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