Friday, January 15, 2021

किसी किस्से के हिस्से से..........'शार्पनर'

अभी एक बजकर पांच मिनट हुए थे, सामने से रचित आता दिखा, वही गुनगुनाते हुए अपनी ही मस्ती में; वर्कशॉप थी मैकेनिकल की; मैं पांच मिनट पहले ही आ चुका था ....शायद उससे भी ज्यादा पहले! किसी के इंतज़ार में नहीं बस उसके सामने वाली सीट पर अपना कब्जा जमाने को..

"और प्रा आज लेक्चर में तो नहीं था तू? लैब में कैसे दर्शन दे दिए?" मजाकिया लहजे में रचित बोला..

उसके पूछने में पूछने से ज्यादा बताना घुला हुआ था, मेरा सारा हाल उससे ज्यादा सिर्फ मुझे पता था!

 विराजो प्रभो! मैंने रचित को कहा; 

हम्म ये लड़की तुझे बर्बाद कर देगी..बैठते हुए रचित ने तंज किया!

 मैं हंस दिया, खैर मैं तो बर्बाद होने आया हूँ पर तू बता तू कैसे सबसे पहले आ गया ? 

अरे सब इधर-उधर टहलते हैं , हम सीधे चले आये मुस्कुराते हुए रचित सामने वाली सीट पर जम चुका था! 

"हाँ ठीक है बस इस सीट से उठ जा" मैंने खिसियाते हुए कहा

"ना उठ रहा बोल?" रचित बोला 

मैं कुछ कह पाता इतने में वो लैब में आ चुकी थी.. और मैं उलझनों से ओझल उसकी उजास में खो चुका था, रचित पीछे मुड़ा तो न था.. बस मेरी आँखों की चमक को देखते ही समझ गया था और अपने आप मेरे पीछे वाली सीट पर आकर बैठ गया..!

वो नजदीक आती जा रही थी..उसके पीछे पूरा बैच..खाली पड़ी लैब में भीड़ हो गयी थी ! और इधर मेरे मन में जैसे किसी कठोर तपस्या का सुफल बरस रहा था....

खैर उसका आना हुआ ...फिर वही मुस्कुराना जिसने न जाने कितनी ही खाबों को मेरे जेहन में संवारा था....

और फिर बैग रखना फिर अपनी तयशुदा सीट पर बैठना.... किसी रानी जैसे ठाठ थे उसके भी, और मैं अपनी आवारगी को सलीके के रंग-रोगन से छिपाता नकारता उसके सामने होता था! खुद को झुठलाना चाहता था मैं उसके लिए, शायद किसी बेहद हसीन खाब की तवज्जो में ऐसा किया जाता होगा; 

मैं जिस सीट पे बैठा था उसके पास ही एक खिड़की थी जिसके पार सरसों लहलहा रही थी...., लैब में सर आ चुके थे और कुछ समझाने में लगे थे, सब अपने अपने कामों में मशगूल थे... बस्स..  मैं ही नहीं था... कहीं भी नहीं, न लैब में न खिड़की के उस पार!

 एक  जुल्फ थी जो उसके चेहरे पे उतरना चाहती थी,  उसे रोक रखा था उसने कान के ऊपर से; मगर वो जुल्फ थी कि बस.....

जुल्फ से ध्यान तब टूटा जब मेरे बाजू बैठे लड़के से उसने शार्पनर माँगा, फिर दूसरे से फिर बाकियों से .....और आखिर में मेरी तरफ देखते हुए बरौनियों को ऊपर कर पूछ लिया.... बिना कुछ कहे बस मुस्कुरा कर...!

शार्पनर तो मेरे पास भी न था मगर वो नज़र... वो मुस्कराहट....वो पुरसुकूं अहसास बाकियों से अलग होने का....बस वही अहसास जिंदगी भर की दौलत थी; इससे ज्यादा क्या चाहता? इससे ज्यादा क्या पाता?  कुछ हासिल करना सब कुछ नहीं होता...किसी अहसास में जीना...किसी गुमान में उड़ना.....उस लम्हे के लिए यही सब कुछ था....हवाएं सरसों की महक में लिपटी हुई खिड़की को पार कर आयीं थीं... मेरे बाल भी बिखर गए थे सलीकों की जिद तोड़ कर.....

किसी किस्से के हिस्से से..........©


#puShyam

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