Friday, January 15, 2021

किसी किस्से के हिस्से से........'एटीएम'

 अभी मुड़ा ही था एटीएम से कैश निकाल कर, कि सामने बस से उतरती हुई दिखाई दी वो l  हालांकि लेक्चर अटेंड करने की जल्दी थी मुझे, मगर उसे देखने को बेबस ही ठहर गया था मैं l और वो कि अपनी ही शाही नज़ाकत से सड़क पार करती हुई चली आ रही थी, उसे देखना हुआ और मेरा थम जाना ! कई - कई बार तो देखा था उसे , मगर हर बार नई सी रौशनी होती थी उसके दीदार में l मद्धम हवाओं में उलझी खिलती सी वो अभी सड़क के इस पार आ ही पायी थी, कि बारिश शुरू हो गई;  बारिश भी इतनी तेज़ कि जैसे उसे तंग करने के लिए ही दौड़ आई हो फलक से l सो उसकी दौड़ती छमक कॉलेज की बजाय उस एटीएम की तरफ मुड़ आयी जहाँ मैं बुत बने खड़ा था l इत्तेफाक था कि बारिश हुई! मगर सच यहां बारिश ही होनी थी..बस बारिश !  भगवान भी कभी-कभी दुआ मांगने से पहले पूरी कर देता है, आज यकीन हो गया था l और बारिश भी रह रह के तेज़ होने लगी थी l

  हम दोनों अब एटीएम के बाहर बनी टीन शेड में बारिश रुकने का इंतज़ार करने लगे l हालांकि हम दोनों नहीं, सिर्फ वो.....शायद ! मेरी कभी बात तो नहीं हुई थी उससे, मगर पहचान अच्छी-खासी थी l वही पहचान जो कभी कैंपस में तो कभी कैंटीन में और कभी-कभी निगाहों में हो जाती है l बस इंतज़ार था कि कभी अपनी बात होगी ; ये इंतज़ार बड़ा लम्बा होता है कभी-कभी बरसों का l खैर सुर्ख हरियाली से लबालब पेड़ों के शज़र झूम रहे थे, पानियों की सरगमें गूँज रहीं थीं और वो अपने खुले हुए बालों को स्कार्फ़ से सुखाने की कोशिश कर रही थी l मैं बस चुपचाप देख रहा था कुदरत के सिंगार को जवां होते हुए .. l बारिश की बूँदें कुछ यूं उसके रुख से गुजरतीं थीं जैसे ओस के कतरे फिसलते जाते हैं कँवल की पंखुड़ियों पे ! बारिश में कभी चाँद अगर निकला हो तो ऐसा हुआ होगा l

    बस खामोश सा देखे जा रहा था उसे l मिले भी तो हम यूं थे कि जैसे समंदर की लहरों ने लाकर फेंक दिया हो दो सीपों को किसी वीराँ साहिल पे; नहीं पता कि बारिश कब रुकेगी, कि कब समंदर से कोई लहर आए और खींच ले जाये हमें अपने भंवर में, फिर कभी ये वक़्त , ये अहसास मिल सकेगा या नहीं ? ना जाने कौन से किनारे नसीब होंगे हमें l इस भंवर में खोये तो फिर मिलेंगे भी या नहीं ? मैं उस चट्टान पे ठहरे उन सीपों में खोया हुआ , न जाने कब से उसकी तरफ देखे जा रहा था कि अचानक उसने खामोशी तोड़ी- "ये कब बंद होगी ?"

होश सम्भालते ,बिना सोचे मैंने भी तपाक से बोल दिया " न ना इन फिफ्टी सेवेन" 

उसने कहा "क्या " ?

मैंने फिर दोहराया " नौ सत्तावन पे "

"आ हाँ तुम्हें जैसे बिलकुल फिक्स टाइम पता होगा ना? " स्कार्फ़ को बैग में रखते हुए उसने ताना मारा 

"हाँ तुमने पूछा ही इतनी उम्मीद से था, तो मुझे भी कॉन्फिडेंस हो लिया बताने का "

कह कर मैं मुस्कुरा दिया और बदले में वो भी हंस पड़ी! हमारी हसतीं निगाहें ठहरी हुई थीं, यूं तो निगाहों का मिलना पहली बार ना था, मगर हाँ कुछ पहली बार सा ही था !

"सीरियसली यार लेक्चर मिस हो गया मेरा " निगाह बारिश की तरफ करते हुए कहा उसने

"हाँ तो अच्छा ही हुआ ना" कहकर मैं भी बारिश की तरफ देखने लगा 

" अच्छा जी " अपनी हँसी को होठों से दबाते हुए वो मुस्कुरा दी l दूर तक मंजर बरस रहा था... हम दोनों के बीच अब बस बारिशों की छनक थी,  जमी हुई खामोशियों को बड़ी सादगी से तोड़ दिया था उसने l

किसी किस्से के हिस्से से........©

#puShyam

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