Friday, January 15, 2021

किसी किस्से के हिस्से से...........'इज़हार'

 चाय का पहला सिप लेकर अखबार अभी रखा ही था कि अचानक यूं लगा जैसे वो मेरे पीछे से गुज़री है ! छत की बॉउंड्री वॉल से पलट कर देखा तो एक लड़की गली के मुहाने की ओर जाती हुई नज़र आई l ये तय नहीं था कि वो वही है या नहीं, मगर मैं चाय का कप किनारे रख दौड़ पड़ा l कभी किसी से मुहब्बत की हो तो ये जाना होगा कि कोई कितना महसूस किया जा सकता है l जितनी देर में मैं गली में पहुंचा वो मुहाने तक पहुँच चुकी थी, इधर मेरी दौड़ भी जारी थी, जिसकी एक नज़र के लिए मैंने कितने ही जद्दोजेहद किये वो आज खुद मेरी गली से गुज़री थी, मगर क्यों ? सवाल मन में थे और जूनून कदमों में ! एक वक़्त वो भी था , जब उसके सामने जाने से पहले मेरे कपड़े सलीके से जड़े हुए और बाल तमीज़ से कढ़े हुए होते थे l मगर मैं बस दौड़ रहा था.. बिखरे बालों से, अलसाए कपड़ों में ; जैसे इस पल में ये सबसे जरूरी हो l दौड़ते हुए ही उसे नाम लेकर पुकारा! अजीब सी बेताबी थी l उसे भी शायद पहचान थी मेरी आवाज़ की.. अनजानों के तो लिए वो कभी न रूकती थी मगर उस वक्त जैसे वहीं जम गई हो ;

कहा-'सुनो'

उसने मुड़ कर देखा , हाँ वही थी! स्कूल खत्म हुए दो साल हो गए थे, और उससे मुहब्बत हुए पूरे साढ़े चार.. अब तक न कह पाया था कि प्यार करता हूँ , शायद वही कहने को दौड़ा था! कई बार तो कोशिश की थी कभी लिखकर , कभी दोस्तों को जरिया बना कर l कई बार ज्ञानियों से भी सीखा था इज़हार करने का तरीका; मगर उसके सामने आते ही सब उड़ जाता था l आज कोई तैयारी न थी बस कह देना था ! इंजीनियरिंग की पढ़ाई इतना तो बेफिक्र बना ही देती है, सो पूरे हौसले से बोला-

"मुझसे तुमसे कुछ बात करनी है"

ये बात मेरी जुबान से पहले निकल गई थी, उससे नज़रें बाद में मिलीं और उसके बाद जैसे जुबान में कोई लब्ज़ ही न रहा हो...

मगर उसने तपाक से बोला " हाँ कहो"  -गज़ब का कॉन्फिडेंस था उसके कहने में l

इंटेलीजेंट , अम्बिशियस और कमाल की खूबसूरत तो वो पहले से थी , ऊपर से उसकी कॉंफिडेंट स्माइल मानो उस वक़्त कहर ही थी l वो जब सामने होती थी तो यूं लगता था जैसे आसपास सब कुछ धुंधला सा है, शायद ये सभी देवदासों ने महसूस किया होगा l सिर्फ वही साफ़ नज़र आती थी एक पुरनूर उजाले से निकली हुई ! जैसे टीवी में फ़रिश्ते दिखाये जाते हैं ..!

गला सूख चुका था, कॉन्फिडेंस का जो माइनस लेवल होता है वो अब मैं महसूस कर रहा था...! 

लड़खड़ाते हुए बोला: " वो ..मैं..ये कह रहा था कि..कुछ नहीं ...वो तुम्हारी सर से बात हुई? वो कह रहे थे कि सारे ओल्ड स्टूडेंट्स से कांटेक्ट करो रीयूनियन करते हैं..!"

मैंने उसकी तरफ देखा - जैसे जमींदोज सितारों को देखते हैं...और उसकी नज़र यूं कि जैसे महल बेचारों को देखते हैं...!

"देखते हैं " वो अपने ही अंदाज़ में बोली

"ठीक है " कहकर मैं चुप हो गया..!

"हम्म ठीक है ".. हम दोनों ने फिर एक बार कहा ...

इस बार भी न कह पाया था , यही सोच कर वापस मुड़ने लगा कि अचानक उसने कहा - "बस ?"  ..."बस यही कहना था " ? 

मैंने पलट कर देखा - उसकी आँखों में एक ठहराव था l कई सवाल थे, आसपास से वो धुंधलापन छंटने लगा था... मुझे महसूस हुआ कि उसकी धड़कन बढ़ रही है, वो कॉन्फिडेंस गायब है.. उसकी खामोश निगाहों में कोई उम्मीद सी थी शायद..!

मुझे वो बेहद मासूम सी दिखी..उसकी यही अदा थी.. सच्ची अदा...! जिसे हमेशा वो अपने सख्त लहजे में छिपाए रखती थी l कोई हो तो उसके जैसा हो... 

मुझमें जो एक जूनून घर से दौड़ते वक़्त था, वो अब होश में बदल चुका था ..! 

जुबान से अनायास ही कह गया - " हाँ यही"

हम दोनों के बीच उन पलों में जो तूफ़ान शबाब पे था वो जैसे थम गया था..लहरें चट्टान को छूकर लौट गईं थीं l

वो मुस्कुराई, खुद को सम्भालते हुए बोली - " तुम हमेशा पागल ही रहोगे.... चलो चलती हूँ फिर "... !

इस पागलपन को कितने ही साल हो चुके थे, बहुत वक़्त होता है ये ! फिर भी न कह सका था उससे , कह देता तो शायद वो अपना लेती या ठुकरा देती, मगर ये वाला इश्क़ खत्म हो जाता जिसके लिए ग़ालिब कहता है -

" कोई मेरे दिल से पूछे, तेरे तीर-ए-नीम कश को 

ये खलिश कहाँ से होती, जो जिगर के पार होता "

मैंने वो खलिश बचा ली थी, जिसे मैं साढ़े चार साल से सम्भाले हुए था, खुदगर्जी थी मगर हाँ....प्यार है या नहीं इस खुमार में जीना ही ज्यादा सेफ था l मैं ये खुमार , ये उलझन , उसका मेरी इक पुकार पे रुक जाना, उसकी आँखों की वो कशिश, ये सारी खुशफहमियां खोना नहीं चाहता था सो फिर कभी...

मैं घर की ओर मुड़ आया , इज़हार हो गया था... जवाब बुन लिए थे!

किसी किस्से के हिस्से से...............©

#puShyam

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