Friday, January 15, 2021

किसी किस्से के हिस्से से......'ट्यूशन'

उस कमरे में दाखिल होने से पहले भी मेरे दिमाग में सिर्फ वही थी, उसका सिर्फ नाम सुना था, उसकी खूबसूरती कभी देखी तो न थी, हाँ दोस्तों की बातों में महसूस जरूर की थी! मगर आज उसे खुद देखने वाला था सो बेताबी कुछ ज्यादा ही थीI खैर जब कमरे में पहुंचा तो देखा लगभग सारे स्टूल, बेंचेस भर चुके थे, बस मास्साब की कुर्सी के पास में दो कुर्सियां ही खाली थीं। एक सादा समझदारी से सकुचाते हुए मैं मास्साब के पीछे जाकर खड़ा हो गया और किसी इशारे के इंतज़ार में रुका रहा, चूँकि ट्यूशन में लड़कियां ज्यादा थीं तो झिझक शबाब पे थी , उनकी तरफ देखा तो नहीं मगर न जाने कैसे ये महसूस हो चुका था कि वो उनमे नहीं थीI  मैं मास्साब की ओर देख रहा था जो कि फ़ोन पे थे,  कि अचानक पीछे से किसी ने कहा "यहीं पे बैठ जाओ ", आवाज़ में तो कोई खूबसूरती न थी, हाँ रुबाब था जैसा सुना था ठीक वैसा ही।

ये वही थी ! और मैं हुक्म की तामील में तुरंत कुर्सी पर जड़ चुका था।

 अब सिर्फ मेरे बाजू वाली कुर्सी ही खाली थी जिस पर कोई बैठ सकता था, मैंने नज़र दौड़ाई सभी बैठ चुके थेI ज़ेहन झिझक में था मगर दिल ने बता दिया कि अब वो ही पास बैठेगी,  और हुआ भी वही I यही वो खुशनुमा डर होता है ? शायद यही ! वो ना जाने किस अदा से कुर्सी पर बैठी हो मगर यूं लगा जैसे शाख से छूट कर रात-रानी उतरी हो नर्म दूब के आगोश में, मेरा फ़िल्मी दिल हाइली एक्टिव मोड में था , मुझे अपने बाईं तरफ एक रौशनी सी महसूस हो रही थीl क्यों कि वो मुझसे थोड़ा पीछे की तरफ बैठी थी तो देखना मुश्किल था और नज़र घुमा कर देखना हिम्मत से बाहर l मगर देखना तो जरुरी था; बाकी लोगों के क्या सूरत-ओ-सवाल थे, मुझे खबर न थी, मास्साब जो बोलते जा रहे थे मैं अपनी नोटबुक में घसीटे जा रहा था, नहीं पता मैं क्या सुन रहा था.. क्या लिख रहा था..?...बस वो रौशनी ..वो रौशनी ही मेरे तवज्जो की दरकार थी ..l वही महसूस होती थी.. I वो काले लिबास में थी इतना अंदाजा चल चुका था..... l मैं अपनी मामूली सी शक्ल को उस तरह ठीक करने में लग गया बस उसे नापसंदगी न हो I 

  इसे कहने में भला क्या परहेज़ करूं कि निहायत ही शरीफ हुआ करता था तब मैं, और उस वक्त सिर्फ नज़र को नहीं पूरी गर्दन को ही 120 डिग्री पे घुमाना थाl झिझक थी पर देर ना की, पहले बाकियों को देखा ,सब मास्साब को देख रहे थे, सांस रोकी मुड़ा और नज़र उसके जानिब कर दी.. मगर देखते ही नई मुसीबत!....पहली बार किसी को यूं देखा पहली बार में ही पकड़ा गया! जो भी हो मगर मैंने जो देखा उससे ज्यादा सुंदर कभी कुछ न देखा था, सचमुच किसी ख्वाब के जैसी...कोई इतना भी खूबसूरत हो सकता है? और मैं नज़र हटा न सका, मैंने ये महसूस किया कि  किसी खूबसूरत रुख को देख कर भी रोंगटे खड़े होते हैं, इस दरम्यान ना जाने कितने पल बीते होंगे...मगर जो भी थे..जिंदगी की सबसे हसीं दौलत हुए...नज़र उस चेहरे के पार कब किसी समंदर सी आँखों में उतर गईं ..पता ही न चला , किसी की आँखों से यूं आँखें मिलाकर  कभी न देखा था ,  मैं न जानता था जिस स्याह समंदर में बढ़ता जा रहा हूँ उसके किनारे ताजिंदगी न पा सकूंगा... 

इससे पहले कभी उसे न देखा था, शायद कभी बचपन में देखा हो, इससे पहले कभी इश्क न  हुआ था...शायद कभी बचपन में हुआ हो....

किसी किस्से के हिस्से से...... ©

#puShyam

No comments:

Post a Comment