Thursday, September 30, 2010

फैसला ३.३० का......

मैं क्या करूँ इंतज़ार इक फैसले के आने का?
एक जिरह है मेरी दो आँखों से, वो तो ख़त्म होगी नही........

न पढ़ सका,मैं मोहब्बत से बड़ा मज़हब कोई
मेरा तो राघव भी वो ,रहमान भी वो ही .......

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