Wednesday, December 26, 2012

कैसी ग़ज़ल?


कैसी नज़्म
कैसी ग़ज़ल
कैसे सजाऊँ मतले
कैसे बिछाऊं हर्फ़
कोई चौराहे पर लुट जाए
कोई तेजाब से झुलसे
कोई ज़िंदा जले
कोई जिंदगी को तरसे

और मैं!

ग़ज़ल बाधूं?
काफिये मिलाऊं?
लफ्ज़ तो साथ ना देंगे!
ईमान तो बगावत करेगा!

जले हुए गुलशन में
खुशबू की बात करूँ
चीखों में
राग छेड़ूँ ?

आसान होगा तुम्हारे लिए
हैवानों से भरी रात में
लोरी सुनकर सो जाना,
मगर मेरे लिए ये जरुरी है
कि मैं जगने की बात करूँ
मैं लड़ने की बात करूँ
आज अगर सो गये
तो
फिर कोई लूटेगा
फिर कोई लुटेगा

मगर किसी रात...... तुम्हारी भी नींद उड़ जायेगी
तुम्हे भी अच्छे लगेंगे...ये मुखड़े...ये अंतरे
और तब शायद तुम
सोने की बात करोगे
....इसलिए जागो और लड़ो...
एक रात सोकर ........
शायद उम्र भर की नींद मिल जाए................
-

पुष्यमित्र उपाध्याय

No comments:

Post a Comment