Tuesday, January 25, 2011

मैं गणतंत्र नही गाऊंगा

जब तक ना अवसर में समता|
जब तक ना शासन में क्षमता|
जब तक ना जन-जन में राष्ट्र पुकार है,
इस दिन को शुभ कहना ही बेकार है|

स्वप्न बाँध कर कई बंधा था संविधान इस भारत का,
टूट चुका है रज-रज में अभिमान मेरे इस भारत का|
जब तक हों सत्ता में लुटेरे|
जब तक हैं न्याय अँधेरे|
जब तक ना अन्यायी का प्रतिकार है,
इस दिन को शुभ कहना ही बेकार है|

भारत माँ के सच्चे रखवाले भुला दिए,
फूहड़ अभिनय और नर्तक सब नायक बना दिए|
जब तक ना सम्मान तिरंगी|
जब तक है चिंतन में फिरंगी|
जब तक ना निज-भाषा कि हुंकार है,
इस दिन को शुभ कहना ही बेकार है.......

No comments:

Post a Comment