Friday, February 1, 2019

तुम उसके पार हो..

मैं नहीं जानता स्वप्न कब टूट जाना चाहिए?
यथार्थ कहाँ शुरू हो जाना चाहिए?
मैं नहीं जानता कितना बर्बाद हुआ जाता है?
कब संभला जाता है ?
नहीं जानता प्रेम कितना किया जाता है?
कभी-कभी कम लगता है एक जीवन भी..
कभी कभी...
"बस काफी हुआ" कह कर उठ जाता हूँ तुम्हारे आगे से मैं...
मुझे सीमाएं नहीं दिखतीं..
क्यों कि उनके पार भी तुम नहीं हो... मैं जानता हूँ
मुझे न यथार्थ भाता है और न स्वप्न
मैं बस एक दुनिया में चला आया हूँ
जिसमें हूँ सिर्फ मैं
अब तुम भी नहीं...
सामने एक अनंत नदी है बहती हुई,
जिसका अंत निहारता हूँ मैं..
तुम उसके पार हो...! हाँ पक्का...

-#PushYam

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